Powered By Blogger

गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

'सखी' : स्त्री की कोमल भावनाओं का सफर

'सखी' : स्त्री की कोमल भावनाओं का सफर
Tuesday, 13 April 2010 16:48 हरिगोविंद विश्वकर्मा

कहा जाता है कि संगीत वह खजाना है जहां इंसान को भावनात्मक संतुष्टि मिलती है। तभी तो जब कभी कोई ख़ूबसूरत गाना हमारे कर्ण-पटल से टकराता है तो सब कुछ थम-सा जाता है और हम उस गीत में खो से जाते हैं। आंखें बंद करके उस गीत को अपने अंदर समाने देते हैं। नवोदित गायिका-गीतकार-संगीतकार रिमि बसु सिन्हा की 'सखी' एक ऐसी ही पेशकश है। एलबम में कुल नौ भावना-प्रधान गीत समाहित हैं। सभी गीतों के बोल जितने खूबसूरत हैं, गायिकाओं ने अंतरमन की छूने वाली आवाज़ से उसी तरह सराबोर किया।
सही मायने में अगर इस एलबम को उपन्यास कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसकी परिकल्पना, लेखन और संगीत रिमि ने ख़ुद तैयार किया है। यह अनोखा प्रयास नारीत्व को ख़ास तरीक़े से सेलिब्रेट करने की कोशिश है और नारी-रचनाधर्मिता का उत्सव भी। यह केवल स्त्रियों के जरिए ही मूर्त रूप देने का कॉन्सेप्ट है। भारतीय संगीत-जगत में इस तरह की यह पहली कोशिश है। इसमें शामिल हर गाने स्त्री की ही सोच हैं, स्त्री के ही अल्फ़ाज़ हैं और स्त्री द्वारा ही सुर में पिरोये गए हैं। चार पीढ़ी की नामचीन और समर्थ नायिकाओं ऊषा मंगेशकर, कविता कृष्णमूर्ति, केएस चित्रा, सुनिधि चौहान, रिचा शर्मा, महालक्ष्मी अय्यर, ऐश्वर्या मजुमदार और खुद रिमि बसु सिन्हा ने इन भावना-प्रधान कर्णप्रिय नग़मों को अपनी जादुई आवाज़ से सराबोर किया हैं।
मसलन, इस मनोहारी संगीत के सफ़र का आग़ाज़ ‘सुन सखी...’ गीत से होता है। इसमें स्त्री ने बताने की कोशिश की है कि वो कितना कुछ कहना चाहती है, सुनना और बांटना चाहती है। तभी तो ईश्वर ने उसे भावना-प्रधान बनाया है और ये कोमल भावनाएं सबको जोड़कर रखती हैं। चित्रा की गायिकी और भाव में सच्ची सखी दिख ही जाती है। अगला पड़ाव ‘दिम तान ना...’ गीत है जिसमें स्त्री आशा का दूत के किरदार में है। वह हर तरफ़ ख़ुशी और उल्लास फैलाना चाहती है। ताकि दुनिया के हर कोने से मोहब्बत की धुन सुनाई पड़े। सुनिधि की सम्मोहित करने वाली आवाज़ इस गीत के साथ हमें उसी दुनिया में ले जाती है।

रिमि बसु सिन्हाइस सुहाने सफ़र का तीसरे ठहराव पर ‘दिल के अरमानों की बात...’ है जिसमें स्त्री के बचपन से तरुणाई तक का अंतरद्वंद्व है। दरअसल, कभी-कभी कितना वक़्त गुज़र जाता है ,स्त्री कितनी चाहत बटोर के रखती है, कितना कुछ करना चाहती है मगर उलझनों की बेड़ियों से मुक्त नहीं हो पाती। उसके अरमान जस के तस रह जाते हैं। वक्त बहुत पीछे छूट जाता है। खुद को खोजने वाले इस गाने को बेहद ही अलग तरह से तैयार किया गया है। अलग तरीके का इस्तेमाल इसलिए किया गया है क्योंकि यह आमतौर पर बहुत कम प्रयोग किया जाने वाले नौ मात्रे के ठेके राग अहीर भैरव पर आधारित है। इस गीत को कविता कृष्णमूर्ति की खनकती आवाज़ ने यादगार बना दिया है।
सफ़र के अगर चौथे गीत ‘नैना जागे...’ की बात करें तो सूफ़ियाना अंदाज़ में पिरोए गए इस नग़मे में स्त्री के सुंदर नयन अपने प्रेरणास्वरूप इष्ट की बात करते हैं। संगीत के कद्रदान बस अपनी आंखें बंद करें और गायिका रिचा के साथ स्त्री के हसीन नयनों की महत्ता, बंद-खुले नयन के सौंदर्य का ख़ूबसूरत दीदार करें। संगीतमय सफ़र का अगला गाना ‘कुछ ना सामझ पाए...’ स्त्री के कमसिन मन की दुविधा, नासमझी, नादानी और भावनाओं के तानेबाने को उकेरता है। नए रिश्ते तलाशती स्त्री का अल्हड़पन में किसी से रिश्ता जुड़ जाना बेहद सहज है। यही थीम है इस संवेदना से छलकते गाने की जो राग खमाज पर आधारित है। महालक्ष्मी की जादुई आवाज़ ने तो इसमें चार चांद लगा दिया है।
अगले मुकाम गीत ‘बोले क्या...’ पर संगीतप्रेमी स्त्री के श्रृंगार पक्ष से रूबरू होते हैं। स्त्री और श्रृंगार एक दूसरे के पूरक हैं। मगर भावनाओं के साथ श्रृंगार का अर्थ भी बदलता रहता है। किसी अपने के लिए श्रृंगार करने में अधिक आनंद आता है। संबंधों के खोने या छूटने से मन तड़पता है, आत्मसम्मान के टूटने से डर लगता है। इसी भावना को संगीतमय बनाया है ऊषा मंगेशकर की सुरीली आवाज़ ने।
अगले गीत का शीर्षक है ‘जो ज़िंदगी की जंग हार रहा है...’ दरअसल, जीवन में गाहे-बगाहे कुछ ऐसी घटनाएं हो जाती है जो विचलित कर देती है। इस गीत में बालिका के रूप में स्त्री ख़ुद कुछ सवाल करती है अपने सपने का साकार करने की बात करती है। बालिका की भावनाओं को अभिव्यक्ति दी है बाल गायिका ऐश्वर्या ने संगीत के सफ़र का आठवें पायदान पर है ‘मेरे मन का पंछी...’ यह स्त्री की प्रेरणा को अभिव्यक्ति देता है। हिंदुस्तानी राग भीम पलासी पर आधारित यह इस गीत को ख़ुस रिमि की मीठी आवाज ने इतना ख़ूबसूरत बना दिया है कि बार बार सुनने का मन करता है। एलबम को अंजाम तक पहुंचाया है ‘नए सपने...’ ने। न जाने कितने बरस का बहुप्रतीक्षित सपना जब साकार होता है तो स्त्री कितनी आत्मविभोर हो जाती है। यह गाना सुनकर पता चलता है। यह गीत सभी गायिकाओं से सम्मिलित स्वर में तैयार किया गया है।
सांस्कृतिक नगरी इलाहाबाद के अति-प्रतिष्ठित बंगाली परिवार में जन्मी रिमि संगीत और नाटक के माहौल में ही पली-बढ़ी। आठ साल की कोमल उम्र से ही संगीत सिखना शुरू किया और जल्द ही शहर के सांस्कृतिक समारोहों का हिस्सा बन गईं। शहर ही नहीं राज्य के अनगिनत संगीत जलसों में स्कूल का प्रतिनिधित्व किया और कई पुरस्कार जीते। 15 साल की उम्र में आकाशवाणी कलाकार बन गईं। फ़िलहाल, वह आकाशवाणी और दूरदर्शन की शीर्ष कलाकारों की फ़ेहरिस्त में हैं।
हिंदुस्तानी संगीत रिमि का हमेशा से पैशन-सा रहा है। इसीलिए दसवीं में इसे एक विषय के रूप में लिया। नामचीन संगीतकार स्वर्गीय बीएन बिस्वास से संगीत की बारीकियां सीखीं। गायन-संगीत में उनकी दीवानगी देखकर उनके माता-पिता ने उन्हें स्नातक में भी संगीत लेने के लिए प्रोत्साहित किया। यही वजह रही कि रिमि ने गुरु पं. रामाश्रय झा और कमला बोस के मार्गदर्शन में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदुस्तानी संगीत में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय सांस्कृतिक प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ गायिका का पुरस्कार भी जीता। वह प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद से संगीत प्रभाकर और सीनियर डिप्लोमा भी हासिल करने में सफल रहीं।
1992 में दिल्ली में शिफ़्ट होने के बाद रिमि टीवी सीरियल्स और फ़िल्मी दुनिया में सक्रिय हो गईं। कई मशहूर ब्रैंड के लिए खनकती आवाज़ में अनेक भाषाओं में कई टाइटल ट्रैक्स, गाने और जिंगल्स रिकॉर्ड कराए और सीरियल्स, शॉर्ट फ़िल्म्स, डॉक्यूमेंटरी के लिए टाइटल गानों को स्वर दिया। वॉइस-ओवर शुरू से उनकी हॉबी रही और डिस्कवरी चैनल्स और कई सरकारी परियोजनाओं के नामचीन वृत्तचित्रों में अपनी आवाज़ से चार चांद लगाया। इसके अलावा वह कई मशहूर म्यूज़िकल शोज़ में हिस्सा लेने लगीं।
1999 में एचएमवी ने रिमि की आवाज़ को अपने नए भोजपुरी प्रॉजेक्ट के लिए चुना जिसे बेहद लंबे इंतज़ार के बाद लॉन्च किया गया। बहरहाल, ‘जाने हमरी बिंदिया’ टाइटल वाला सोलो-एलबम बेहद लोकप्रिय हुआ और राष्ट्रीय स्तर पर कवरेज मिली। नतीजतन एचएमवी ने अगले प्रॉजेक्ट में उन्हें साइन करने में रुचि दिखाई मगर पति की कीनिया की राजधानी नैरोबी में पोस्टिंग हो जाने से उन्हें देश से बाहर जाना पड़ा।
रिमि 2000 में नैरोबी गईं और चार साल तक वहां रहीं। कहते हैं चांद जहां भी रहेगा अपनी चांदनी तो बिखेरेगा ही। रिमि नैरोबी की संगीत दुनिया में भी सक्रिय हो गईं। वहां हिंदुस्तानी संगीत और सांस्कृतिक समारोह का बढ़ावा दिया और कई कद्रदान बनाए। जल्द ही इस अफ्रीकी शहर के संगीत फ़लक पर अपने लिए अहम मुकाम बना लिया। नैरोबी लोकल एफ़एम चैनल की बेहद जानी-पहचानी उदघोषिका बन गईं। गणतंत्र दिवस, गांधी जयंती जैसे राष्ट्रीय पर्वों पर भारतीय दूतावास की ओर से हिंदी भाषा में आयोजित स्टेज शोज़ और लाइव रेडियो प्रोग्रोम्स प्रस्तुत किए और उनका निर्देशन किया। वहां रिमी ने संगीत ही नहीं हिंदी में अपनी ज़बरदस्त रचनाशीलता का लोहा मनवाया। वसंत उत्सव और महिषासुर मर्दिनी जैसे प्रोग्राम्स की रूपरेखा बनाई, उन्हें लिखा और निर्देशन करते हुए सफलतापूर्वक पेश भी किया जिसे भारतीय दूतावास ने प्रायोजित किया। वहां रिमि ने लाइव प्रोग्राम्स पेश करने का नया ट्रेंड भी सेट किया। होली, रामनवमी, वैसाखी, महावीर जयंती, रमज़ान आदि के मौक़े पर पेश किए जाने वाले गीत के साथ ख़ूबसूरत काव्यमय स्क्रिप्ट और शेरो-शायरी जोड़कर उसमें जादू भर दिया। कुल मिलाकर उन्होंने विदेश में भारत की समृद्ध धर्मनिरपेक्ष परंपरा को आगे बढ़ाया जिसे समूचे अफ्रीका में एशियाई समुदाय के लोगों ने सराहा। रिमि ने भारतीय दूतावास की ओर से संगीत मर्मज्ञ पं. जसराज का मैराथन इंटरव्यू लिया जो नैरोबी के लोकप्रिय लोकल रेडियो पर प्रसारित भी हुआ। इसके अलावा वह कीनिया की चिन्माया मिशन सेवा ट्रस्ट से जुड़ीं और नैरोबी में अंतरराष्ट्रीय समागम पर उनका एलबम ‘भक्ति’ कंपोज़ किया जिसकी मांग जो आज भी उसी तरह है।
कीनिया में भारतीय संस्कृति और संगीत को बढ़ावा देने के अभियान में रिमि के अद्भुत योगदान को देखते हुए ही भारतीय दूतावास ने उन्हें गांधी जयंती पर संयुक्त राष्ट्रसंघ के नैरोबी स्थित अफ्रीकी मुख्यालय में संगीत उत्सव आयोजित करने की दावत दी जो बेहद सफल रहा। किसी प्रवासी का यह दुर्लभ करतब है जिसके चलते कीनिया में भारतीय दूतावास की ओर से रिमि का सम्मान किया गया। बेशक, रिमि की विविधता ही उनकी ख़ासियत है। ‘सखी’ से पहले टाइम्स म्यूज़िक ने कुमार शानू के साथ एलबम ‘मैया का दरबार’ रिलीज़ किया। फ़िलहाल रिमी मुंबई में हैं और देश की आर्थिक राजधानी में अपनी गायन और कॉम्पोज़िशन क्षमता के बल पर ख़ुद को पूर्ण संगीतकार के रूप स्थापित करने के लिए प्रयासरत हैं।
लेखक हरिगोविंद विश्वकर्मा फोकस टीवी, हमार टीवी के मुंबई ब्यूरो के चीफ हैं.

कोई टिप्पणी नहीं: