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बुधवार, 14 जुलाई 2010

ग़ज़ल - आ गए क्यों उम्मीदें लेकर

आ गए क्यों उम्मीदें लेकर
करूं तुम्हें विदा क्या देकर...

लाख मना की पर ना माने
क्यों रह गए तुम मेरे होकर...

अपना लेते किसी को तुम भी
आखि‍र क्यों रहे खाते ठोंकर...

जी ना सके इस जीवन को
क्या पाए खुद को जलाकर...

अब तो मेरी तमाम उम्र में
रहोगे चुभते कांटे बनकर...

हरिगोविंद विश्वकर्मा

मंगलवार, 13 जुलाई 2010

कविता : चित्रकार की बेटी

तुम बहुत अच्छे इंसान हो
धीर-गंभीर और संवेदनशील
दूसरों की भावनाओं का सम्मान करने वाले
बहुत कुछ मेरे पापा की तरह
तुम्हारे पास है बहुत आकर्षक नौकरी
कोई भी युवती सौभाग्य समझेगी अपना
तुम्हारी जीवन-संगिनी बनने में
मैं भी अपवाद नही हूं
तभी तो
अच्छा लगता है मुझे सान्निध्य तुम्हारा
इसे प्यार कह सकते हो तुम
हां तुममें जो पुरूष है
उससे प्यार करने लगी हूं मैं
स्वीकार नहीं कर पा रही हूं
फिर भी परिणय प्रस्ताव तुम्हारा
तुम एक चित्रकार हो
और मैं चित्रकार की बेटी
तुम्हारे अंदर देखती हूं मैं
अपने चित्रकार पापा को
एक ऐसा इंसान
जो पूरी ज़िंदगी रहा
दीन-हीन और पराजित
अपराधबोध से ग्रस्त
अपनी बेटी-पत्नी से डरता हुआ
पैसे-पैसे के लिए संघर्ष करता हुआ
हारता हुआ ज़िंदगी के हर मोर्चे पर
तमाम उम्र जो ओढ़े रहा
स्वाभिमान की एक झीनी चादर
उसके स्वाभिमान ने
उसके सिद्धांत ने
बनाए रखा उसे तमाम उम्र कंगाल
और छीन लिया मुझसे
मेरा अमूल्य बचपन
मेरी मां का यौवन
मेरी मां सहेजती रही
उस चित्रकार को
पत्नी की तरह ही नहीं
एक मां की तरह भी
एक संरक्षक की तरह भी
उसे खींचती रही
मौत के मुंह से
सावित्री की तरह
फिर भी वह चला गया
ख़ून थूकता हुआ
मां को विधवा और मुझे अनाथ करके
बेशक वह था एक महान चित्रकार
एक बेहद प्यार करने वाला पति
एक ख़ूब लाड़-दुलार करने वाला पिता
लेकिन वह चित्रकार था
एक असामाजिक प्राणी भी
समाज से पूरी तरह कटा हुआ
आदर्शों और कल्पनाओं की दुनिया में
जीने वाला चित्रकार
कभी न समझौते न करने वाला ज़िद्दी कलाकार
लेकिन जब वह बिस्तर पर पड़ा
भरभरा कर गिर पड़ीं सभी मान्यताएं
बिखर गए तमाम मूल्य
अंतत दया का पात्र बनकर
गया वह इस दुनिया से
उसके भयावह अंत ने
ख़ून से सनी मौत ने
हिलाकर रख दिया बहुत अंदर से मुझे
नफ़रत सी हो गई मुझे
दुनिया के सभी चित्रकारों से
मेरे अंदर आज भी
जल रही एक आग
जब मैं देखती हूं अपनी मां को
ताकती हूं उसकी आंखों में
तब और तेज़ी से उठती हैं
आग की लपटें
पूरी ताक़त लगाती हूं मैं
ख़ुद को क़ाबू में रखने के लिए
ख़ुद को सहज बनाने में
इसीलिए
तुमसे प्यार करने के बावजूद
तुम्हारे साथ
परिणय-सूत्र में नहीं बंध सकती मैं
जो जीवन जिया है मेरी मां ने
एक महान चित्रकार की पत्नी ने
मैं नहीं करना चाहती उसकी पुनरावृत्ति
तुम्हारी जीवनसंगिनी बनकर
नहीं दे पाऊंगी तुम्हें
एक पत्नी सा प्यार
इसलिए मुझे माफ़ करना
हे अद्वितीय चित्रकार

हरिगोविंद विश्वकर्मा

सोमवार, 12 जुलाई 2010

ग़ज़ल - जिंदगी भर

जोड़-घटाने में उलझे रहे जिंदगी भर
सौदा घाटे का करते रहे जिंदगी भर

एक गुनाह की बड़ी कीमत चुकाई
खुद से ही डरते रहे जिंदगी भर

दुनिया के सामने आखिर आ ही गया
जिस राज को छिपाते रहे जिंदगी भर

कामयाबियों के नाम पर शिफर ही रहे
न मालूम क्या करते रहे जिंदगी भर

दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंका
जिस शख्स से चिपके रहे जिंदगी भर

कलियुग का मतलब जान नहीं पाए
सतयुग का भ्रम पाले रहे जिंदगी भर

झूठ बोलने का साहस कभी न हुआ
सच से भी कतराते रहे जिंदगी भर

खुद रोने लगते थे कहीं देखकर आंसू
बस आंसू ही बहाते रहे जिंदगी भर

दिल को हमेशा दिमाग से ऊपर रखा
भावनाओं में बहते रहे जिंदगी भर

आखिर देखने भी नहीं आया वह शख्स
जिसका इंतजार करते रहे जिंदगी भर

हरिगोविंद विश्वकर्मा

संभल जाऊंगा

ऐसा ना सोचो कि मैं बिखर जाऊंगा
बस संभलते संभलते संभल जाऊंगा

मौसम क्या वह तो बदलता रहता है
फूल की तरह मैं कभी गिर जाऊंगा

वक़्त भर देता है हर तरह के ज़ख्म
मैं भी इस दौर से निकल जाऊंगा

कब पूरी हुई है आरजू हर किसी की
यही सोचकर अपना मन बहलाऊंगा

नसीबवाले रहे जिन्हें मोहब्बत मिली
उनका नाम ना लो बिफर जाऊंगा

हरिगोविंद विश्वकर्मा

शनिवार, 10 जुलाई 2010

जीवन का डिब्बा

डिब्बे में से निकालकर
कर देता हूं खर्च मैं
रोजाना एक दिन
मुझे नहीं है पता
बचे हैं कितने दिन
जीवन के डिब्बे में
लेकिन मुझे मालूम है
इसी तरह
एक-एक करके
खर्च कर डालूंगा मैं
अपने तमाम दिन
एक दिन
आएगा ऐसा भी
जब डिब्बा
हो जाएगा खाली
और उसमें से
निकालना पड़ेगा
खाली हाथ मुझे
बिना दिन के
मुझे खाली हाथ देखकर
पार्थिव कहेंगे लोग मुझे
फिर देंगे जला
या कर देंगे दफन
कोई मुझे
एक दिन तो दूर
अपना एक पल भी
नहीं देगा
दान में या उधार
मेरी पत्नी भी
मेरे बच्चे भी
मेरा परिवार भी
मेरे दोस्त भी…

हरिगोविंद विश्वकर्मा

मेरी उम्मीदें

बेक़ाबू अकसर हो जाती हैं मेरी उम्मीदें
मेरी बात नहीं मानती हैं मेरी उम्मीदें

हर रोज़ सुला देता हूं अपने ही हाथों
पर सुबह जाग जाती हैं मेरी उम्मीदें

जानती हैं तुम हो दरिया के उस किनारे
फिर भी ज़ोर मारती हैं मेरी उम्मीदें

पस्त नहीं होती तेरी उदासीनता से
मुझे मज़बूर करती हैं मेरी उम्मीदें

इन्हें शायद दर्द का अंदाज नहीं होता
तभी तो दर्द बढ़ाती हैं मेरी उम्मीदें

मन को दिखाती हैं ढेर सारे सपने
फिर मुझको रुलाती हैं मेरी उम्मीदें

पैदा हो गईं ये पता नहीं कैसे ये
मुझे लाचार करती हैं मेरी उम्मीदें

ज़हर देना ही पड़ेगा इन्हें एक दिन
मेरे दर्द की सबब हैं मेरी उम्मीदें

माफ करना हे मेरे सपनों की परी
सब मुझसे लिखवाती हैं मेरी उम्मीदें

हरिगोविंद विश्वकर्मा

गुरुवार, 1 जुलाई 2010

गांधीजी की सेक्स लाइफ

गांधीजी की सेक्स लाइफ
Monday, 26 April 2010 16:50

यह लेख मशहूर ब्रिटिश इतिहासकार जैड ऐडम्स की नई किताब “गांधीः नेकेड ऐंबिशन” की समीक्षा भर है॥
हरिगोविंद विश्वकर्मा

क्या राष्ट्रपिता मोहनदास कर्मचंद गांधी असामान्य सेक्स बीहैवियर वाले अर्द्ध-दमित सेक्स मैनियॉक थे? जी हां, महात्मा गांधी के सेक्स-जीवन को केंद्र बनाकर लिखी गई किताब “गांधीः नेकेड ऐंबिशन” में एक ब्रिटिश प्रधानमंत्री के हवाले से ऐसा ही कहा गया है। महात्मा गांधी पर लिखी किताब आते ही विवाद के केंद्र में आ गई है जिसके चलते अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में उसकी मांग बढ़ गई है। मशहूर ब्रिटिश इतिहासकार जैड ऐडम्स ने पंद्रह साल के अध्ययन और शोध के बाद “गांधीः नेकेड ऐंबिशन” को किताब का रूप दिया है।
किताब में वैसे तो नया कुछ नहीं है। राष्ट्रपिता के जीवन में आने वाली महिलाओं और लड़कियों के साथ गांधी के आत्मीय और मधुर रिश्तों पर ख़ास प्रकाश डाला गया है। रिश्ते को सनसनीख़ेज़ बनाने की कोशिश की गई है। मसलन, जैड ऐडम्स ने लिखा है कि गांधी नग्न होकर लड़कियों और महिलाओं के साथ सोते ही नहीं थे बल्कि उनके साथ बाथरूम में “नग्न स्नान” भी करते थे।
महात्मा गांधी हत्या के साठ साल गुज़र जाने के बाद भी हमारे मानस-पटल पर किसी संत की तरह उभरते हैं। अब तक बापू की छवि गोल फ्रेम का चश्मा पहने लंगोटधारी बुजुर्ग की रही है जो दो युवा-स्त्रियों को लाठी के रूप में सहारे के लिए इस्तेमाल करता हुआ चलता-फिरता है। आख़िरी क्षण तक गांधी ऐसे ही राजसी माहौल में रहे। मगर किसी ने उन पर उंगली नहीं उठाई। ऐसे में इस किताब में लिखी बाते लोगों ख़ासकर, गांधीभक्तों को शायद ही हजम हों। दुनिया के लिए गांधी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के आध्यात्मिक नेता हैं। वह अहिंसा के प्रणेता और भारत के राष्ट्रपिता भी हैं। जो दुनिया को सविनय अवज्ञा और अहिंसा की राह पर चलने की प्रेरणा देता है। कहना न होगा कि दुबली काया वाले उस पुतले ने दुनिया के कोने-कोने में मानव अधिकार आंदोलनों को ऊर्जा दी, उन्हें प्रेरित किया।
नई किताब यह खुलासा करती है कि गांधी उन युवा महिलाओं के साथ ख़ुद को संतप्त किया जो उनकी पूजा करती थीं और अकसर उनके साथ बिस्तर शेयर करती थीं। बहरहाल, ऐडम्स का दावा है कि लंदन से क़ानून की पढ़ाई करने के बाद वकील से गुरु बने गांधी की इमैज कठोर नेता की बनी जो अपने अनोखी सेक्सुअल डिमांड से अनुयायियों को वशीभूत कर लेता है। आमतौर पर लोग के लिए यह आचरण असहज हो सकता है पर गांधी के लिए सामान्य था। ऐडम्स ने किताब में लिखा है कि गांधी ने अपने आश्रमों में इतना कठोर अनुशासन बनाया था कि उनकी छवि 20वीं सदी के धर्मवादी नेताओं जैम्स वॉरेन जोन्स और डेविड कोरेश की तरह बन गई जो अपनी सम्मोहक सेक्स अपील से अनुयायियों को क़रीब-क़रीब ज्यों का त्यों वश में कर लेते थे। ब्रिटिश हिस्टोरियन के मुताबिक महात्मा गांधी सेक्स के बारे लिखना या बातें करना बेहद पसंद करते थे। किताब के मुताबिक हालांकि अन्य उच्चाकाक्षी पुरुषों की तरह गांधी कामुक भी थे और सेक्स से जुड़े तत्थों के बारे में आमतौर पर खुल कर लिखते थे। अपनी इच्छा को दमित करने के लिए ही उन्होंने कठोर परिश्रम का अनोखा स्वाभाव अपनाया जो कई लोगों को स्वीकार नहीं हो सकता।
किताब की शुरुआत ही गांधी की उस स्वीकारोक्ति से हुई है जिसमें गांधी ख़ुद लिखा या कहा करते थे कि उनके अंदर सेक्स-ऑब्सेशन का बीजारोपण किशोरावस्था में हुआ और वह बहुत कामुक हो गए थे। 13 साल की उम्र में 12 साल की कस्तूरबा से विवाह होने के बाद गांधी अकसर बेडरूम में होते थे। यहां तक कि उनके पिता कर्मचंद उर्फ कबा गांधी जब मृत्यु-शैया पर पड़े मौत से जूझ रहे थे उस समय किशोर मोहनदास पत्नी कस्तूरबा के साथ अपने बेडरूम में सेक्स का आनंद ले रहे थे।
किताब में कहा गया है कि विभाजन के दौरान नेहरू गांधी को अप्राकृतिक और असामान्य आदत वाला इंसान मानने लगे थे। सीनियर लीडर जेबी कृपलानी और वल्लभभाई पटेल ने गांधी के कामुक व्यवहार के चलते ही उनसे दूरी बना ली। यहां तक कि उनके परिवार के सदस्य और अन्य राजनीतिक साथी भी इससे ख़फ़ा थे। कई लोगों ने गांधी के प्रयोगों के चलते आश्रम छोड़ दिया। ऐडम ने गांधी और उनके क़रीबी लोगों के कथनों का हवाला देकर बापू को अत्यधिक कामुक साबित करने का पूरा प्रयास किया है। किताब में पंचगनी में ब्रह्मचर्य का प्रयोग का भी वर्णन किया है, जहां गांधी की सहयोगी सुशीला नायर गांधी के साथ निर्वस्त्र होकर सोती थीं और उनके साथ निर्वस्त्र होकर नहाती भी थीं। किताब में गांधी के ही वक्तव्य को उद्धरित किया गया है। मसलन इस बारे में गांधी ने ख़ुद लिखा है, “नहाते समय जब सुशीला निर्वस्त्र मेरे सामने होती है तो मेरी आंखें कसकर बंद हो जाती हैं। मुझे कुछ भी नज़र नहीं आता। मुझे बस केवल साबुन लगाने की आहट सुनाई देती है। मुझे कतई पता नहीं चलता कि कब वह पूरी तरह से नग्न हो गई है और कब वह सिर्फ अंतःवस्त्र पहनी होती है।”
किताब के ही मुताबिक जब बंगाल में दंगे हो रहे थे गांधी ने 18 साल की मनु को बुलाया और कहा “अगर तुम साथ नहीं होती तो मुस्लिम चरमपंथी हमारा क़त्ल कर देते। आओ आज से हम दोनों निर्वस्त्र होकर एक दूसरे के साथ सोएं और अपने शुद्ध होने और ब्रह्मचर्य का परीक्षण करें।” ऐडम का दावा है कि गांधी के साथ सोने वाली सुशीला, मनु और आभा ने गांधी के साथ शारीरिक संबंधों के बारे हमेशा अस्पष्ट बात कही। जब भी पूछा गया तब केवल यही कहा कि वह ब्रह्मचर्य के प्रयोग के सिद्धांतों का अभिन्न अंग है।
ऐडम्स के मुताबिक गांधी अपने लिए महात्मा संबोधन पसंद नहीं करते थे और वह अपने आध्यात्मिक कार्य में मशगूल रहे। गांधी की मृत्यु के बाद लंबे समय तक सेक्स को लेकर उनके प्रयोगों पर लीपापोती की जाती रही। हत्या के बाद गांधी को महिमामंडित करने और राष्ट्रपिता बनाने के लिए उन दस्तावेजों, तथ्यों और सबूतों को नष्ट कर दिया, जिनसे साबित किया जा सकता था कि संत गांधी दरअसल सेक्स मैनियैक थे। कांग्रेस भी स्वार्थों के लिए अब तक गांधी और उनके सेक्स-एक्सपेरिमेंट से जुड़े सच को छुपाती रही है। गांधीजी की हत्या के बाद मनु को मुंह बंद रखने की सलाह दी गई। सुशीला भी इस मसले पर हमेशा चुप ही रहीं।
किताब में ऐडम्स दावा करते हैं कि सेक्स के जरिए गांधी अपने को आध्यात्मिक रूप से शुद्ध और परिष्कृत करने की कोशिशों में लगे रहे। नवविवाहित जोड़ों को अलग-अलग सोकर ब्रह्मचर्य का उपदेश देते थे। ऐडम्स के अनुसार सुशीला नायर, मनु और आभा के अलावा बड़ी तादाद में महिलाएं गांधी के क़रीब आईं। कुछ उनकी बेहद ख़ास बन गईं। बंगाली परिवार की विद्वान और ख़ूबसूरत महिला सरलादेवी चौधरी से गांधी का संबंध जगज़ाहिर है। हालांकि गांधी केवल यही कहते रहे कि सरलादेवी उनकी “आध्यात्मिक पत्नी” हैं। गांधी जी डेनमार्क मिशनरी की महिला इस्टर फाइरिंग को प्रेमपत्र लिखते थे। इस्टर जब आश्रम में आती तो बाकी लोगों को जलन होती क्योंकि गांधी उनसे एकांत में बातचीत करते थे। किताब में ब्रिटिश एडमिरल की बेटी मैडलीन स्लैड से गांधी के मधुर रिश्ते का जिक्र किया गया है जो हिंदुस्तान में आकर रहने लगीं और गांधी ने उन्हें मीराबेन का नाम दिया।
ऐडम्स ने कहा है कि नब्बे के दशक में उसे अपनी किताब “द डाइनैस्टी” लिखते समय गांधी और नेहरू के रिश्ते के बारे में काफी कुछ जानने को मिला। इसके बाद लेखक की तमन्ना थी कि वह गांधी के जीवन को अन्य लोगों के नजरिए से किताब के जरिए उकेरे। यह किताब उसी कोशिश का नतीजा है। जैड दावा करते हैं कि उन्होंने ख़ुद गांधी और उन्हें बेहद क़रीब से जानने वालों की महात्मा के बारे में लिखे गए किताबों और अन्य दस्तावेजों का गहन अध्ययन और शोध किया है। उनके विचारों का जानने के लिए कई साल तक शोध किया। उसके बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे।
इस बारे में ऐडम्स ने स्वीकार किया है कि यह किताब विवाद से घिरेगी। उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं इस एक किताब को पढ़कर भारत के लोग मुझसे नाराज़ हो सकते हैं लेकिन जब मेरी किताब का लंदन विश्वविद्यालय में विमोचन हुआ तो तमाम भारतीय छात्रों ने मेरे प्रयास की सराहना की, मुझे बधाई दी।” 288 पेज की करीब आठ सौ रुपए मूल्य की यह किताब जल्द ही भारतीय बाज़ार में उपलब्ध होगी। “गांधीः नेकेड ऐंबिशन” का लंदन यूनिवर्सिटी में विमोचन हो चुका है। किताब में गांधी की जीवन की तक़रीबन हर अहम घटना को समाहित करने की कोशिश की गई है। जैड ऐडम्स ने गांधी के महाव्यक्तित्व को महिमामंडित करने की पूरी कोशिश की है। हालांकि उनके सेक्स-जीवन की इस तरह व्याख्या की है कि गांधीवादियों और कांग्रेसियों को इस पर सख़्त ऐतराज़ हो सकता है।