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शनिवार, 10 जुलाई 2010

जीवन का डिब्बा

डिब्बे में से निकालकर
कर देता हूं खर्च मैं
रोजाना एक दिन
मुझे नहीं है पता
बचे हैं कितने दिन
जीवन के डिब्बे में
लेकिन मुझे मालूम है
इसी तरह
एक-एक करके
खर्च कर डालूंगा मैं
अपने तमाम दिन
एक दिन
आएगा ऐसा भी
जब डिब्बा
हो जाएगा खाली
और उसमें से
निकालना पड़ेगा
खाली हाथ मुझे
बिना दिन के
मुझे खाली हाथ देखकर
पार्थिव कहेंगे लोग मुझे
फिर देंगे जला
या कर देंगे दफन
कोई मुझे
एक दिन तो दूर
अपना एक पल भी
नहीं देगा
दान में या उधार
मेरी पत्नी भी
मेरे बच्चे भी
मेरा परिवार भी
मेरे दोस्त भी…

हरिगोविंद विश्वकर्मा

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