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मंगलवार, 9 सितंबर 2014

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में सरकार बनाने का विकल्प केंद्र सरकार को क्यों दिया?

हरिगोविंद विश्वकर्मा
सुप्रीम कोर्ट के लिए मेरे मन में वही सम्मान है जो पूरे देशवासियों के मन में है. इसलिए मैं पूरे सम्मान के साथ देश की सबसे बड़ी अदालत से पूछना चाहूंगा कि आख़िर किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को दो विकल्प दियाः पहला जल्दी से दिल्ली में सरकार बनाई जाए या दूसरा, विधानसभा चुनाव कराए जाएं. जबकि सुप्रीम कोर्ट को भी यह पता है कि दिल्ली विधानसभा में न तो भारतीय जनता पार्टी के पास सरकार बनाने लायक बहुमत है, न ही आम आदमी पार्टी के पास. अगर उपराज्यपाल की पहल पर बीजेपी सरकार बनी तो शक्ति-परीक्षण के दौरान हर दल अपने विधायकों के लिए ह्विप जारी करेगा. तब कांग्रेस या आप का जो विधायक अपने दल का निर्देश नहीं मानेगा और बीजेपी सरकार को किसी भी सूरत में समर्थन देगा, दल-बदल क़ानून के तहत उसकी सदस्यता ख़त्म हो जाएगी. ऐसे में 29 सदस्यों वाली संभावित बीजेपी सरकार काम कैसे करेगी? वह दिल्ली की जनता के लिए क़ानून कैसे बनाएगी?

67 सदस्यों वाली दिल्ली विधानसभा में बीजेपी के पास 29 सीट और आप के पास 27 सीट और कांग्रेस के पास 8 सीट है. तीनों दलों ने ऐलान कर दिया है कि एक दूसरे का किसी भी सूरत में समर्थन नहीं करेंगे. जब तीनों दल में कोई तालमेल ही नहीं, कोई सहमति नहीं, तब दिल्ली में सरकार कैसे बन सकती है?  यानी सरकार बनाने का एक मात्र रास्ता है विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त हो. यानी सुप्रीम कोर्ट के इस विकल्प से विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त की पूरी आशंका है. यह बात सुप्रीम कोर्ट के जज न जानते हो, यह नहीं कह सकते.

ऐसे में माननीय सुप्रीम कोर्ट को साफ़-साफ़ कहना चाहिए था कि जब किसी के पास सरकार बनाने लायक बहुमत ही नहीं है, तब यथाशीघ्र राज्य में विधानसभा चुनाव कराए जाने चाहिए जिससे दिल्ली की जनता को लोकप्रिय सरकार मिल सके. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा कुछ नहीं किया. जिससे थोड़ी भी समझ रखने वाला नागरिक हैरान है. सुप्रीम कोर्ट को संविधान का संरक्षक भी माना जाता है, लिहाज़ा, संरक्षक को त्रिशंकु विधानसभा में ग़ैरक़ानूनी या ग़ैरसंवैधानिक काम होने से रोकने की पहल करनी चाहिए थी. न कि एक महीने का समय देना चाहिए था जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने किया है.

इस सूरत-ए-हाल में आम आदमी सोचने लगता है कि सुप्रीम कोर्ट का पांच सदस्यों की संविधान पीठ ने इस तरह का हैरान करने वाला फ़ैसला क्यों लिया? क्या चाहते हैं देश के सबसे प्रतिष्ठित जज? ख़ासकर ऐसे समय जब अभी हाल ही में रिटायर हुए मुख्य न्यायाधीश hr सदाशिवम को केरल का राज्यपाल बनाया गया है. क्या केंद्र सरकार ने एक रिटायर मुख्य न्यायाधीश को राज्यपाल बनाकर यह संकेत दे दिया कि सरकार का पक्ष लेने वाले जजों का ख़याल रखा जाएगा. देश में न्यायपालिका, ख़ासकर शीर्ष न्यायपालिका, ही एकमात्र ऐसा संस्थान रहा है जहां, लोग अब भी उम्मीद के साथ देखते हैं. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को केंद्र सरकार को एक महीने का समय देने से पहले संभावित पहलुओं पर ग़ौर नहीं करना चाहिए था. आपकी क्या राय है? क्या आप सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सहमत हैं?
http://harigovindvishwakarma.blogspot.com/2014/08/blog-post_50.html

शनिवार, 6 सितंबर 2014

The most difficult and toughest journey from home to school in Himalyas... Amazing video... Just watch

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सोमवार, 1 सितंबर 2014

Separated in 1965 war, couple awaits reunion by Hari Govind Vishwakarma

Tuesday, August 22, 2006, Chandigarh, India

Hari Govind Vishwakarma
Poonch LoC Point (J&K), August 21
An Indian woman and her Pakistani husband, married 41 years ago, are still waiting for their honeymoon. because they live a kilometer apart on either side of LoC.
Although the five crossing points along the LoC have opened in past one year under confidence-building measure between India and Pakistan uniting thousands of divided families across the border could bring no end to the tragic saga of Barkat bi and her husband Niaz Mohammad, who are in their 70s.
Barkat bi, living in frontier belt at Jallas village of Poonch district of Jammu and Kashmir since 1965, was separated from her husband Niaz Mohammad 41 years ago. Niaz Mohammad lives in Hajeera area of the PoK. She is still waiting to be united with her husband living just a kilometer away.
Jallas is the last Indian village which till recently was situated in the danger zone because of shelling from across the LoC.
The couple was separated during the 1965 Indo-Pak war. Niaz Mohammad was left on the other side of 'ceasefire line' which was later converted into the LoC.
Even after the war ended, there were no means of communication between the couple living on the two sides of the LoC. Telephone lines are still snapped between the two areas on both the sides.
But as the movement of civilians started due to initiative taken by India and Pakistan, the link between the couple was established.
''We had married each other after falling in love and tied the knot in fifties in our village in Poonch,'' says Barkat bi remembering her years of suffering and endless wait for her husband.
She further stated, ''It was the feeling of love which could not separate us emotionally even though we were separated physically.
“There was no way I could forget my love. The peace between the two countries is not just a word for both of us. It is the difference between life and death.''
Barkat bi still preserves the old family photographs and see them many times a day. The lady has not lost hopes and has applied to get permission to go across the LoC to embrace her missing love.

When asked whether she is still excited about her honeymoon, she says " yes I am waiting my soulmate for fresh honeymoon after 41 long years". — UNI 

नरेंद्र मोदीः चायवाले से प्रधानमंत्री बनने तक का सफर


हाल ही मे (March 2014) गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के संपूर्ण पर लिखी मेरी किताब "नरेंद्र मोदीः एक शख़्सियत" का प्रकाशन हुआ है। मैगज़िन साइज़ (A4) में 60 पेज की यह किताब नरेंद्र मोदी की पूरी जीवन यात्रा है। इस किताब का प्रकाशन देश की अग्रणी प्रकाशन संस्थान पॉयनियर बुक कंपनी (जो मेरी सहेली, हेम मेकर, न्यूवूमैन और माझी सहेली जैसी बेहद लोकप्रिय पत्रिकाओं को प्रकाशन करती है) ने प्रकाशित किया है। महज 25 रुपए की यह किताब देश भर के बुक स्टॉल्स पर उपलब्ध है। जो लोग नरेंद्र मोदी के बारे में कम या औसत जानकारी रखते हैं, उन्हें इस किताब को ज़रूर पढ़नी चाहिए।

Photo: हाल ही मे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के संपूर्ण पर लिखी मेरी किताब "नरेंद्र मोदीः एक शख़्सियत" का प्रकाशन हुआ है। मैगज़िन साइज़ (A4) में 60 पेज की यह किताब नरेंद्र मोदी की पूरी जीवन यात्रा है। इस किताब का प्रकाशन देश की अग्रणी प्रकाशन संस्थान पॉयनियर बुक कंपनी (जो मेरी सहेली, हेम मेकर, न्यूवूमैन और माझी सहेली जैसी बेहद लोकप्रिय पत्रिकाओं को प्रकाशन करती है) ने प्रकाशित किया है। महज 25 रुपए की यह किताब देश भर के बुक स्टॉल्स पर उपलब्ध है। जो लोग नरेंद्र मोदी के बारे में कम या औसत जानकारी रखते हैं, उन्हें इस किताब को ज़रूर पढ़नी चाहिए।