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मंगलवार, 9 जून 2015

व्यंग्य - मेरे देश के कुत्ते..... मेरे देश के कुत्ते !!!


हरिगोविंद विश्‍वकर्मा
सुबह-सबेरे घर से बाहर निकलकर मैं सड़क पर आया। स्टेशन तक पैदल जाने के मूड में था। उसी समय भौंकते कुत्तों का एक समूह मुझ पर टूट पड़ा। एक बार तो मैं तो बुरी तरह डर गया, क्योंकि इधर मुझे लगने लगे कि कुत्ते भी आदमी की तरह हो गए हैं। एकदम ख़ुदगर्ज़। सेल्फ़-ओरिएंटेड। उनमें इंसानियत, नहीं-नहीं, कुत्तियत नाम की चीज़ नहीं रह गई है। कहीं मुझे काट न लें। जिन कुत्तों में कुत्तियत नहीं उनका कोई भरोसा नहीं।

दरअसल, न्यूज़ चैनल में नौकरी के अंतिम दिनों में अल-सुबह की ड्यूटी लगा दी गई। पता नहीं, अनजाने में या अंतिम दो तीन दिन परेशान करने के लिए। जब ड्यूटी चार्ट बन गया तो दफ़्तर जाना ही था। जब सब सो रहे थे, तब उठना अच्छा बिलकुल नहीं लगा। मगर, मजबूरी थी। ना, नहीं कर सकता था। बहरहाल, इसी बहाने सुबह-सबेरे लंबे समय बाद ग्रामसिंहों से मुलाक़ात हो गई। लेकिन सारे ग्रामसिंह पाकिस्तान-मोड पर थे। यानी अपनी जगह से मुंह से ही मुझ पर गोली दाग़ रहे थे। यह अलग बात थी कि उनके भौंकने से मैं घायल नहीं हुआ।

-क्या है? मैंने ज़ोर से डांटा। कहीं सुना था, इंसान के चिल्लाने से अमूमन जानवर घबरा जाते हैं। अपनी आक्रामकता छोड़कर एकदम डिफ़ेंस पर आ जाते हैं।

मेरे डांटने का भौंक रहे एक कुत्ते पर अच्छा असर हुआ। शायद वह बहुत पहले एक बार मुझसे सुबह की ड्यूटी के दौरान मिल चुका था। मैंने तो नहीं, उसने ज़रूर मुझे पहचान लिया। वह फ़ौरन चुप हो गया। दुम हिलाता हुआ मेरी ओर लपका। मैं समझ गया, यह दुम हिला रहा है, यानी शांतिप्रिय है। शांतिप्रिय देश की तरह आक्रमण करने की इसमें हिम्मत इसमें नहीं है। लिहाज़ा, यह मुझसे फ्रेंडशिप करना चाहता है। कहने का मतलब इस कुत्ते ने मुझे ताक़तवर मान लिया।

-क्या है? दूर रहो! दूर रहो! मैं उस पर रहम दिखाने के मूड में नहीं था। लिहाज़ा, दोबारा डांट पिलाई। कुत्ते ने इसके बाद तो पूरी तरह से सरेंडर कर दिया। मेरा नेतृत्व स्वीकार कर लिया। उसकी नज़र लगातार मुझ पर थी। उसने मेरे चेहरे से ग़ायब होती आक्रामकता पढ़ ली। लिहाज़ा, लपक कर मेरे चरणों में आ गिरा। मेरे जूते चाटने लगा। मैंने सोचा, चलो यह तो मेरा चमचा बन गया। कोई बात नहीं। आम आदमी की तरह मुझे भी चमचे अच्छे लगते हैं। हां, चमचागिरी दूर से ही करें तब।

बहरहाल, उस कुत्ते की देखा-देखी बाक़ी कुत्ते भी मेरी शरण में आने लगे। किसी नेता-अफ़सर की तरह मेरे चमचों की संख्या बढ़ने लगी। कोई भी कुत्ता भौंक नहीं रहा था। यानी सबने सामूहिक रूप से मेरी प्रभुता स्वीकार कर ली थी। कुल नौ कुत्ते थे। नौ रत्न। सबने मुझे कमांडो की तरह घेर लिया। दो आगे, दो पीछे, दो दाएं और दो बाएं। नौवां कुत्ता बहुत आगे था। शायद मेरे लिए सेफ पैसेज़ बना रहा था। मैं किसी नेता की तरह कमांडोज़ के बीच निर्भय होकर पैदल रेलवे स्टेशन चला जा रहा था। अचानक सबसे आगे वाले कुत्ते का एनकाउंटर दूसरे मोहल्ले के कुत्तों से हो गया। उसने फ़ौरन यू-टर्न लिया और दुम दबाकर मेरी ओर लपका।

-क्या है? मैंने और ज़ोर से दूसरे मोहल्ले के कुत्तों को डांटा। मेरे सम्मान में सबके सब चुप हो गए। उन्होंने आपस में भी एक दूसरे पर भौंकना बंद कर दिया। मैं उस समय हैरान रह गया, जब देखा कि कुत्ते आपस में फुसफुसाकर कुछ कह रहे हैं। यानी कुत्तों ने आपस की सदियों पुरानी परंपरागत दुश्मनी छोड़ दी। कमाल है! इस बीच, मेरे मोहल्ले के कुत्तों ने मेरी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी दूसरे मोहल्ले के कुत्तों को सौंप दी और वे एक दूसरे को उचित स्थान पर सूंघकर वापस लौट गए। मैं आगे बढ़ता रहा। मेरी सुरक्षा अब दूसरे मोहल्ले के कुत्ते कर रहे थे। उसी तरह नौ रत्न। चारों ओर दो-दो कुत्ते। एक कुत्ता सबसे आगे था।

मेरे पदयात्रा की ख़बर जंगल के आग की तरह मुझसे पहले ही तीसरे मोहल्ले में पहुंच गई। वहां आदमियों में तो नहीं कुत्तों में ज़रूर हड़कंप मच गया। उनमें भौंका-भौंकी होने लगी। दो कुत्ते स्कॉटिंग कर रहे कुत्ते के पीछे दौड़े आ रहे थे। मैंने फिर बहुत ज़ोर से डांटा -क्या है? मैनर नाम की चीज़ नहीं है तुम कुत्तों में। कब तक लड़ोगे आपस में। मेरी बात मानो, मलाई खाना हो तो दुश्मनी भुला दो। एक हो जाओ। फ़ायदे में रहोगो। किसी सरकार की कृपादृष्टि मिल गई तो पीढ़ियां संवर जाएंगी।

मेरी बात का तीसरे मोहल्ले के कुत्तों पर भी ख़ासा असर हुआ। सब दुम हिलाते हुए मेरी शरण में आ गए। दोनों मोहल्ले के कुत्ते एक दूसरे को सूंघने लगे। इस कार्यक्रम के पूरा होने पर दूसरे मोहल्ले के कुत्ते भी स्वमोहल्ला वापस लौट गए। अब मैं तीसरे मोहल्ले के कुत्तों के संरक्षण में था। मोहल्ले के नौ कुत्ते मेरा बॉडीगार्ड बनने पर गौरवान्वित महसूस कर रहे थे। फूले नहीं समा रहे थे। मैं उऩकी सुरक्षा में आराम से स्टेशन की ओर चला जा रहा था।

अचानक मैंने स्टेशन के पास के मोहल्ले के कुत्तों के जागरण की आवाज़ सुनी। फिर मुझे सुखद आश्चर्य यह हुआ कि यहां भी कुत्ते एक दूसरे से लड़ नहीं रहे हैं, बल्कि प्यार का प्रदर्शन कर रहे हैं। एक दूसरे को सूंघ रहे हैं। स्टेशन के कुत्तों ने तीसरे मोहल्ले के कुत्तों को प्रेम के साथ विदा किया और मेरी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली।

अंततः इन सभी कुत्तों ने मुझे सकुशल रेलवे स्टेशन पर पहुंचा दिया। सभी कुत्ते मुझे प्लेटफ़ॉर्म तक छोड़कर वापस लौट गए। बस एक कुत्ता मेरी हिफ़ाज़त में प्लेटफ़ॉर्म पर ही खड़ा रहा। वह मेरे ट्रेन में सवार होने के बाद ही वापस लौटा।

ट्रेन में मुझे सीट मिल गई। बैठकर मैं कुत्तों के बारे में ही सोच रहा था। इतने ढेर सारे कुत्ते मेरी हिफ़ाज़त कर रहे थे। मैं कुत्तों का निर्विवाद नेता बन गया था। अचानक मेरे मन में ख़याल आया कि मुझे शांति का नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए। चार-चार मोहल्ले के कुत्तों के बीच शांति, प्रेम और भाई-चारा स्थापित करने के लिए। मेरे कारण कुत्तों ने अपनी परंपरागत दुश्मनी छोड़ दी। यानी मैं इंसानों में इंसानियत भले न जगा पाया होऊं परंतु कुत्तों में कुत्तियत ज़रूर जगा दिया। कुत्ते मेरे साथी बन गए। मैंने सुबह ड्यूटी लगाने के लिए सीनियर को धन्यवाद दिया। उन्होंने मुझे यह अहसास दिलाया कि मैं भी पदयात्रा करने वाला शांति की पूजारी हूं। कुत्तों का नेता हूं।

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