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मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

“भारत माता की जय” मत बोलें, पर शोर भी न करें कि “भारत माता की जय” नहीं बोलेंगे..

हरिगोविंद विश्वकर्मा
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन के प्रमुख और हैदराबाद से लोकसभा सदस्य असदुद्दीन ओवैसी ने पहले कहा, गर्दन पर छूरी रख दो तब भी भारत माता की जय नहीं बोलूंगा।अब पता नहीं उन्हें क्या हो गया है, जहां भी जाते हैं, वहां हिंदुस्तान ज़िंदाबाद या जय हिंद ज़रूर बोलते हैं, वह भी एक बार नहीं, कई-कई बार बोलते हैं। शायद अपनी ग़लती का एहसास हो गया है, इसीलिए, 29 मार्च को लखनऊ में अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने पांच बार "हिंदुस्तान ज़िंदाबाद" और पांच बार "जय हिंद" के नारे लगाए। कोई मांग नहीं रहा है फिर भी उन्होंने सफ़ाई भी दी वह देश भक्त हैं। हिंदुस्तान के शहरी हैं। अव्वल दर्जे के शहरी, लेकिन उन्हें किसी से देश भक्ति का सर्टिफिकेट नहीं चाहिए।

ओवैसी ही नहीं, देश में किसी नागरिक को किसी दूसरे नागरिक या संगठन से देशभक्ति का सर्टिफिकेट लेने की कोई ज़रूरत नहीं है। लिहाज़ा, कोई व्यक्ति या संगठन अपने को देशभक्त और दूसरे को अदेशभक्त भी नहीं कह सकता। भारतवासियों के मूल अधिकारों को महफूज़ रखने के लिए बनाए गए भारतीय संविधान में कहीं भी नहीं लिखा गया है कि सुबह उठकर सबसे पहले ज़ोर से भारत माता की जय बोलें या जो लोग भारत माता की जय बोलेंगे, केवल वही देशभक्त कहलाएंगे, बाक़ी देशभक्त नहीं कहलाएंगे। परंतु भारतीय संविधान के 395 अनुच्छेदों में कहीं भी कहीं नहीं लिखा है, कि सार्वजनिक तौर पर चिल्ला-चिल्ला कर या फतवा जारी करके कहें कि भारत माता की जय नहीं बोलेंगे।

सम्मान या भक्ति प्रदर्शित करने की चीज़ नहीं हैं, लोग स्वेच्छा से अपने माता-पिता और बड़ो के प्रति सम्मान और भक्ति प्रदर्शित करते हैं। अगर कोई बच्चा अपने माता-पिता या बड़ों का सम्मान न करें, तो वे लोग उससे यह नहीं कहेंगे कि सम्मान करो या भक्ति दिखाओ। देशभक्ति भी इसी तरह प्रदर्शित करने की चीज़ नहीं। वह सच्चे नागरिक, जिसे अंग्रेज़ी में सन ऑफ़ सॉइल कहते हैं, की पर्सनॉलिटी में इनबिल्ट होती है। इसलिए भारत माता की जय बोलिए या मत बोलिए, इस महान देश को कोई फ़र्क नहीं पड़ता। हां, गंभीर, समझदार और ज़िम्मेदार नागरिक पब्लिकली कोई ऐसी ओछी बातें नहीं करते, जिससे किसी को उसकी निष्ठा पर उंगली उठाने का मौक़ा मिले। इस मसले पर सहारनपुर के दारुल उलूम देवबंद ने फतवा जारी किया है कि मुसलमान वंदे मातरम् की तरह ही भारत माता की जय भी नहीं बोल सकते। मुफ़्तियों की खंडपीठ के मुताबिक़, इंसान को जन्म इंसान ही दे सकता है, तो धरती मां कैसे हो सकती है। मुसलमान अल्लाह के अलावा किसी की पूजा नहीं कर सकता तो भारत को देवी कैसे मानें। इसी आधार पर देवबंद ने कहा कि भारत माता की जय बोलना इस्लाम में नहीं है, लिहाज़ा मुसलमान भारत माता की जय नहीं बोलेंगे।

दरअसल, इस्माल की ग़लत व्याख्या करने वाले ये नीम हकीम मुफ़्ती हमेशा अपनी क़ौम का नुकसान करते रहे हैं। यहां इनका तर्क हैं कि लोग पृथ्वी को मां नहीं कह सकते, क्योंकि उन्हें पृथ्वी ने पैदा नहीं किया, बल्कि उन्हें उनकी मां ने पैदा किया है। यह बड़ी अजीब और हास्यास्पद हालत है। इन लोगों को कौन समझाए कि इंसान जिससे भोजन लेता है, उसी को मां कहता है। मां वस्तुतः परवरिश की सिंबल है। बच्चा पैदा होने के बाद जिस स्त्री का स्तनपान करता है, उसे मां कहता है। इसी तरह पृथ्वी यानी धरती भी मां हैं, क्योंकि ज़िंदगी भर इंसान भोजन धरती से लेता है। और धरती के हिंद महासागर क्षेत्र में कुल 3,287,263 वर्ग किलोमीटर भूभाग पर फैले हुए हिस्से को भारत, हिंदुस्तान और इंडिया कहा जाता है। चूंकि यही भूखंड यहां पैदा होने और पलने-बढ़ने वालों को भोजन देता है, इसलिए इस भूखंड को सम्मान से भारत माता कहा जाता है।

भारत माता यानी भारत एक राष्ट्र है। एक संपूर्ण स्वाधीन और लोकतांत्रिक राष्ट्र जो 29 राज्यों और सात केंद्र शासित क्षेत्रों में विभाजित है। इस भूखंड पर रहने वाला हर नागरिक केवल और केवल भारतीय यानी भारतवासी है। बिना किसी संदेह के भारतीयता इस देश में सबसे बड़ा धर्म है। कबिलाई कल्चर की तरह नहीं, बल्कि इस देश को एक सभ्य देश की तरह चलाने के लिए एक संविधान बनाया गया है, वह देश का सबसे बड़ा धर्मग्रंथ है। हिंदुत्व हो, इस्माल हो या फिर ईसाइयत या फिर दूसरा कोई धर्म, सभी धर्म भारतीयता नाम के इस धर्म के सामने बौने हैं। इसी तरह देश के धर्मग्रंथ यानी भारतीय संविधान के आगे गीता, क़ुरआन और बाइबल सबके सब दूसरी वरीयता के धर्म हैं। यही अंतिम सच है, इस पर तर्क-वितर्क की कोई गुंजाइश नहीं।

कोई नागरिक अगर हिंदू धर्म को भारतीयता से ऊपर और गीता को भारतीय संविधान से बड़ा मानता है, तो उसे ऐसी जगह या ऐसे देश में चले जाना चाहिए, जहां भारत, भारतीयता या भारतीय संविधान न हो। कोई नागरिक अगर इस्लाम को भारतीयता से ऊपर और क़ुरआन को भारतीय संविधान से बड़ा मानता है, तो उसे ऐसी जगह या ऐसे देश में चले जाना चाहिए, जहां भारत, भारतीयता या भारतीय संविधान न हो। इसी तरह अगर कोई नागरिक किसी दूसरे धर्म को भारतीयता से ऊपर और अपने धर्मग्रंथ को भारतीय संविधान से ऊपर मानता है, तो उसे भी ऐसी जगह या ऐसे देश में चले जाना चाहिए, जहां भारत, भारतीयता या भारतीय संविधान न हो। और जब तक इस भूखंड पर आप हैं, आप सबसे पहले भारतीय हैं, न कि हिंदू, मुस्लिम या ईसाई।

इस संप्रभु, सामाजिक और सेक्यूलर देश में हर नागरिक को लिखने, बोलने और धर्म मानने की पूरी आज़ादी मिली हुई है। बोलने-लिखने की आज़ादी इतनी ज़्यादा है कि लोग देश के सर्वोच्च शासक प्रधानमंत्री तक की आलोचना करते हैं। उसके फ़ैसलों से सार्वजनिक तौर पर असहमति जताते हैं। इसी आज़ादी के चलते आजकल देश का विभाजन व देश के टुकड़े करने की बात कहना, राष्ट्रगान या राष्ट्रीय गीत न गाना और भारत माता की जय न बोलने की बात करने का फैशन सा बन गया है। लिहाज़ा, असदुद्दीन ओवैसी के ख़िलाफ़ सार्वजनिक तौर पर भारत माता की जय नहीं बोलने का ऐलान करने के लिए कठोर कार्रवाई होनी चाहिए थी। ओवैसी ही नहीं, पब्लिकली ऐसे बयान देने वाले हर व्यक्ति का मताधिकार भी छीन लिया जाना चाहिए। यह पहल सुप्रीम कोर्ट को ही करनी होगी। देश से जुड़े ऐसे संवेदनशील मसले पर सुप्रीम कोर्ट को ख़ुद संज्ञान लेना चाहिए।


दरअसल, भारत माता की जय बोलने और न बोलने पर विवाद ही नहीं होना चाहिए था। आतंकवाद से मुसलमानों का पहले ही बहुत ज़्यादा नुकसान हो चुका है। लिहाज़ा, ख़ुद मुसलमानों को ही आगे आकर भारत माता की जय बोलने का विरोध कर रहे लोगों का सार्वजनिक तौर पर बहिष्कार करना चाहिए। वरना यह मसला मुसलमानों को मुख्यधारा से अलग-थलग कर सकता है। इतना ही नहीं, यदि मुसलमान चुप रहे तो यह संदेश देने की साज़िश भी की जा सकती है कि हर मुसलमन की यही भावना है, जबकि यह सच नहीं है। ओवैसी जैसे मुट्ठी भर लोगों को छोड़ दिया जाए तो देश का आम मुसलमान उसी तरह देशभक्त है, जिस तरह हिंदू। उसे किसी से देशभक्ति का प्रमाणपत्र लेने की ज़रूरत नहीं है। इस नाजुक मसले पर संवेदनशील होने की ज़रूरत है और बहके हुए लोगों से कहना चाहिए कि भारत माता की जय मत बोलें, पर शोर भी न करें कि भारत माता की जय नहीं बोलेंगे। अगर जागरुक मुसलमान फ़ौरन आगे आकर इसे नहीं संभाल तो इस संवेदनशील मसले को आरएसएस हाईजैक कर सकता है, जैसा कि लगने लगा है।

सोमवार, 4 अप्रैल 2016

महबूबा मुफ़्ती मुख्यमंत्री बनने वाली जम्मू कश्मीर की पहली और भारत की 16वीं महिला

हरिगोविंद विश्वकर्मा
मेहबूबा मुफ़्ती फ़िलहाल जम्मू-कश्मीर की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने जा रही हैं। स्वतंत्र भारत के इतिहास में चीफ़ मिनिस्टर की कुर्सी तक पहुंचने वाली महबूबा 16वीं महिला हैं। जम्मू-कश्मीर का भरत में विलय 26 अक्टूबर 1948 में हुआ था। उसके बाद वहां 1965 तक प्रधानमंत्री हुआ करते थे। बहरहला, उसके बाद वहां सरकार के मुखिया का पद मुख्यमंत्री कर दिया गया। इस तरह राज्य में किसी महिला को सत्ता का मुखिया बनाने में 50 साल लग गए।

अगर महिला मुख्यमंत्रियों की बात करें तो स्वतंत्रता सेनानी और कांग्रेस नेता सुचेता कृपलानी (सुचेता मजूमदार) देश के किसी राज्य की मुख्यमंत्री बनने का गौरव पाने वाली पहली महिला थीं। उन्होंने 2 अक्टूबर 1963 को उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। वह भारत की प्रथम महिला सीएम थीं और चार साल से ज़्यादा समय तक अपने पद पर रहीं। सुचेता के बाद उड़ीसा की नंदिनी सत्पथी दूसरी महिला मुख्यमंत्री बनीं और 14 जून 1972 को उन्हें कांग्रेस शासित उड़ीसा का सीएम बनाया गया। इसके बाद 1974 में फिर वह राज्य की मुखिया बनीं।

इसी तरह गोवा की शशिकला काकोडकर 12 अगस्त 1973 को राज्य की सीएम बनी तब तक गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिल सका था। महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी की नेता शशिकला 1977 में दोबारा सीएम बनीं थीं। देश की चौथी महिला सीएम बनने का गौरव मिला असम की सैयदा अनवरा तैमूर को। सईदा ने 6 दिसंबर 1980 को असम के चीफ़ मिनिस्टर की शपथ ली थी। कांग्रेस की सैयदा 30 जून 1981 तक अपने पद पर रहीं।

तमिलनाडु के एमजी रामचंद्रन के निधन के बाद 7 जनवरी 1988 को उनकी पत्नी जानकी रामचमद्रन राज्य की मुख्यमंत्री बनीं। बहरहाल, उनके कार्यकाल में ही पार्टी पर बाद अभिनेत्री जे जयलिलता का नियंत्रण हो गया और तमिलनाडु को दूसरी महिला मुख्यमंत्री जयलिलता के रूप में मिली जब 24 जून 1991 को तमिलनाडु की महिला मुख्यमंत्री बनीं। फिलहाल वह चौथी बार सीएम हैं।

दलित नेता मायावती को उत्तर प्रदेश का दूसरा मुख्यमंत्री बनने का गौरव मिला। जब मुलायम सिंह यादव की सरकार के पतन और बहुतचर्चित गेस्ट हाऊस कांड के बाद 3 जून 1995 को मायावती बीजेपी के सहयोग उत्तर प्रदेश की दूसरी महिला सीएम बनीं। गेस्ट उस कांड का असर मायावती पर इस कदर हुआ कि फिर उन्होंनें मुलायम पर भरोसा नहीं किया। हालांकि चार बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन हो चुकी हैं और अगले साल पांचवी बार राज्य की कमान अपने हाथ में लेने की कोशिश करेंगी।

पंजाब में कांग्रेस नेता राजिंदर कौर भट्टल को राज्य का पहला मुख्यमंत्री बनने का गौरव मिला, जब उन्होंने 21 जनवरी 1996 को पंजाब की सीएम की शपथ ली। भट्टल एक साल तक राज्य सरकार की मुखिया  रहीं। बिहार की राबड़ी देवी को 25 जुलाई 1997 को बिहार की पहली महिला सीएम बनने का श्रेय तब मिला, जब उनके पति लालूप्रसाद यादव को चारा घोटाले के आरोप में मुख्यमंत्री पद छोड़ा। बाद में लालू जेल गए। इस घोटाले में उन्हें सज़ा हो चुकी है और फ़िलहाल वह ज़मानत पर हैं।

इसी तरह दिल्ली की सरकार बचाने के लिए बीजेपी ने सुषमा स्वराज को दिल्ली का पहला लेडी सीएम बनने का सम्मान दिया और 12 अक्टूबर 1998 को दिल्ली की सीएम बनीं। लेकिन प्याज संकट के कारण बीजेपी उस साल विधानसभा चुनाव हार गई और कांग्रेस की शीला दीक्षित 3 दिसंबर 1998 को दिल्ली की दूसरी महिला सीएम बनी और तीन कार्यकाल तक सीएम बनी रहीं।

बीजेपी की ही वसुंधरा राजे को राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव तब मिला जब बीजेपी विधानसभा चुना में कांग्रेस को हराकर सत्ता में आई। वसुंधरा ने 8 दिसंबर 2003 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। फिलहाल, 2013 में वसुंधरा दूसरी बार सीएम बनी। इसी तरह बीजेपी की फायर ब्रांड नेता उमा भारती 8 दिसंबर 2003 को मध्यप्रदेश की पहली महिला सीएम बनने का गौरव हासिल है, लेकिन एक केस में उन्हें सीएम पद छोड़ना पड़ा।

तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बैनर्जी को कम्युनिस्टों के गढ़ पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव 20 मई 2011 को मिला जब वहां की जनता ने कम्युनिस्ट शासन का अंत किया और टीएमसी सत्ता सौंप दी। फिलहाल, लोकसभा चुनाव में ममता का जादू बरकरार रहा।

नरेंद्र मोदी के दिल्ली राजनीति में आने और देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद बीजेपी शासित गुजरात में  आनंदीबेन पटेल को पहली महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव मिला उन्होंने 22 मई 2014 गुजरात की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।

दरअसल, आरंभ से ही अन्य क्षेत्रों की तरह भारतीय राजनीति में महिलाएं पूरी तरह उपेक्षित ही रही हैं। समय समय पर उनको सेरेमोनियल पदों पर बिठाकर ये दावे किए जाते रहे हैं कि महिलाओं की हालत देश में तेज़ी से सुधर रही है लेकिन यह दावा पूरी तरह खोखला ही रहा है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ही अभिजात्य घरों की कई महिलाएं राजनीति में आई।


बहरहाल, मेहबूबा मुफ़्ती जम्मू-कश्मीर की पहली महिला मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है और इसके साथ ही स्वतंत्र भारत के इतिहास में मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाली वो 16वीं महिला बन गई हैं। सीएम की कुर्सी तक पहुंचने वाली मेहबूबा जम्मू-कश्मीर की 10 वीं राजनेता हैं। यह इस बात का संकेत है कि भारतीय राजनीति में महिलाएं अलग-थलग रही हैं।

शनिवार, 2 अप्रैल 2016

बिना वधू बने ही रुखसत हुई "बालिका वधू" प्रत्यूषा

हरिगोविंद विश्वकर्मा
दुनिया के सामने एक आदर्श बहू के रूप में आई और छोटे परदे पर अपनी सादगी और मोहक मुस्कान से करोड़ों लोगों के दिलों में जगह बनाने वाली प्रत्यूषा बैनर्जी की रियल लाइफ में भी बहू बनने की बड़ी हसरत थी, लेकिन वह हसरत हसरत ही रह गई और बिना वधू बने ही बालिका वधू दुनिया से अचानक अपने दोस्तों और प्रशंसकों को मायूस करती हुई रुख़सत हो गई।

दरअसल, बेहद भावुक किस्म की प्रत्यूषा की ज़िंदगी में 2009 बिज़नेसमैन मकरंद मल्होत्रा आया और दोनों का सीरियस अफेयर लंबे समय तक चला। प्रत्यूषा दरअसल, बहू बरकर नई जीवन की पारी शुरू करना चाहती थी। लिहाज़ा, वह चाहती थी कि दोनों शादी कर लें, जबकि मकरंद इतने जल्दी घऱ बसाने के लिए तैयार नहीं था. उसने प्रत्यूषा से शादी करने से इंकार कर दिया। इसके बाद दोनों में खटपट होने लगी और कहासुनी मारपीट तक पहुंच गई। अचानक 2013में मीडिया में दोनों के ब्रेकअप की ख़बर आई।

बहरहाल, उसके बाद प्रत्यूषा और मकरंद में खुलेआम झगड़े हुए। प्रत्यूषा ने मकरंद पर और मकरंद ने बाद अपने बचाव में प्रत्यूषा पर आरोप लगाते रहे। मामला पुलिस स्टेशन तक भी पहुंच गया। प्रत्युषा का कहना था कि मकरंद ने उन्हें जान से मारने की धमकी देता है और घर आकर डराता और मारपीट भी करता है। बहरहाल, कुछ दिनों में दोनों अपने आप शांत हो गए और अपनी-अपनी दुनिया में मस्त हो गए.

प्रत्यूषा अकेलापन फील करने लगी और उस समय उसे सहारा मिला एक प्रोडक्शन हाउस चलाने वाले
राहुलराज सिंह का। दोनों डेट करने लगे और उनका रिलेशन साथ जीने मरने की कसमे खाने तक पहुंच गया। बस क्या था प्रत्यूषा बहू बनने के सपने फिर से देखने लगी। इसी दौरान वह अपने प्रेमी के साथ एक रियलिटी शो में गई और वहां से विदा लेते समय दोनों ने जल्द ही शादी करने का वादा किया। लोगों ने सोचा ग्लैमरस दुनिया का यह कपल आदर्श मैरीड कपल बन जाएगा।

लेकिन दिन गुज़रते रहे, दोनों की शादी नहीं हुई। सार्वजनिक तौर पर विवाह करने का ऐलान करने के बाद भी उनकी शादी नहीं हुई। प्रत्यूषा और राहुल राज का रिश्ता 2015 में परवान चढ़ा था। जब राहुल शादी से आनाकानी करने लगा तो इस साल फरवरी में प्रत्युषा को संदेह होने लगा की राहुल किसी और को चाहने लगा है और शायद इस बार भी बहू बनने की उसकी हसरत पूरी नहीं हो पाएगी। इस ख़्याल के चलते वह डिप्रेशन में चली गई। प्रत्यूषा बहुत डिप्रेस थी और हाल कहे मई उसने व्हाट्सएप स्टेटस में लिखा था .."मरकर भी मुंह न तुझसे मोड़ना." यानी प्रत्यूषा किसी भी कीमत पर राहुल को नहीं छोड़ना चाहती थी। संभवतः मौत को गले लगाना उसी डिप्रेशन का नतीजा है।

प्रत्यूषा की एक खास सहेली के मुताबिक, पिछले कई हफ़्ते से वह राहुल के साथ घर न बसा पाने के कारण डिप्रेशन में थीइस बात का समर्थन प्रत्यूषा को जानने वाले कई अभिनेत्रियों ने की। प्रत्यूषा-राहुल की कॉमन फ्रेंड लीना डायस के मुताबिक, ''राहुल डिवोर्सी हैं। राहुल और उसकी दोस्त सलोनी शर्मा कथित तौर पर प्रत्यूषा को टॉर्चर करते थे। पुलिस का कहना है कि 'बालिका वधू' की 'आनंदी' को घर में फंदे से लटकते देखकर राहुल घबरा गया। बकौल राहुल, ''मैं इस हादसे से डर गया था। हालांकि मुझे लगा था वो जिंदा हैं। डर के चलते ही मैंने पुलिस को इन्फॉर्म नहीं किया।" प्रत्यूषा की मौत के बाद अस्पताल में राहुल की गैरमौजूदगी पर कई को-स्टार्स ने सवाल उठाए थे।


25 साल की जमशेदुर की इस समर्थ अभिनेत्री ने शुक्रवार की शाम कथित तौर पर रहस्यम परिस्थितियों में मौत का आलिंगन कर लिया। मुंबई पुलिस उसके प्रेमी राहुल राज सिंह के बयान के आधार पर कहग रही है कि प्रत्युषा के जीवन के अंतिम शुकवार को प्रत्यूषा ने अचानक अपना कमरा बंद किया और पंखे से फांसी लगा ली. हालाँकि अभी निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है क्यूंकि पुलिस को अभी भी राहुल से पूछताछ करनी है जो कोकिलाबेन अस्पताल में डाक्टरों के प्रत्युषा को मृत घोषित करते ही सन्देहासपद तरीक़े से गायब हो गया था। जांच के दौरान पुलिस को प्रत्यूषा के फ्लैट से दो सेलफोन मिले। दोनों फोन की फॉरेन्सिक टेस्ट होगा। यह देखा जाएगा कि प्रत्यूषा ने आखिरी कॉल किसे किया था।

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2016

भारत सेमीफाइनल वेस्टइंडीज़ से क्यों हारा..?

हरिगोविंद विश्वकर्मा
टी-20 विश्वकप के सेमीफाइनल में मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में वेस्टइंडीज़ के हाथों भारत की पराजय से भारतीय क्रिकेटप्रेमी दुखी हो गए। कई लोगों ने माना कि गुरुवार को शाम किस्मत ने भारत का साथ नहीं दिया। कई लोगों ने कहा कि दो नोबॉल की वजह से भारत हार गया। जबकि सच यह है कि किस्मत ने वेस्टइंडीज़ से ज़्यादा भारत का साथ दिया, क्योंकि सिमंस को अगर दो नोबॉल पर जीवनदान मिला तो कोहली दो रनआउट एक बार कैच आउटहोने से बच गए थे।

भारत-वेस्टइंडीज़ के बीच सेमीफाइनल मैच का अगर निष्पक्ष विश्लेषण किया जाए तो यह कहने में गुरेज़ नहीं होना चाहिए कि भारत अपनी ग़लती और महेंद्र सिंह धोनी के चंद ग़लत फ़ैसले के कारण हार गया। हालांकि मैच के बाद कमेंटेटर से बातचीत के दौरान धोनी ने जब हार के लिए मैच के आधे घंटे पहले शुरू होने को वजह बताया तो कमेंटेटर भी हंसने लगे।

बहरहाल, यह तो मानना पड़ेगा कि विश्व चैंपियन बनने के लिए किसी टीम की अपने एक खिलाड़ी पर इतनी निर्भ्ररता ठीक नहीं। कोई भी टीम अगर किसी एक खिलाड़ी पर बुरी तरह आश्रित है तो वह कप जीतने की हक़दार नहीं हो सकती। अगर टी-20 विश्वकप की बात करें तो टीम इंडिया बुरी तरह विराट पर निर्भर है। यही वजह रही कि टीम इंडिया वानखेडे की रनों से भरी पिच पर 20 ओवर में केवल 192 रन बना सकी, जबकि धोनी को पता था कि अभी 13 दिन पहले इसी मैदान पर दक्षिण अफ्रीका की टीम 229 रन बनाने के बावजूद हार गई थी।

बांग्लादेश पर भारत की 1 रन से जीत के बाद धोनी की तारीफ़ के पुल बांध दिए गए थे। जबकि सच यह था कि उस दिन भारत ने मैच जीता नहीं था, बल्कि ख़ुद बांग्लादेश मैच हार गया था। बहरहाल, धोनी से पूछा जाना चाहिएथा कि रवींद्र जडेजा जैसे औसत दर्जे के खिलाड़ी को अंतिम एकादश में क्यों रखा जा रहा है। ख़ासकर जिस वानखेड़़े पिच पर गेंद घूम न रही हो, उस पर आर अश्विन के साथ जडेजा को क्यों टीम में रखा।

अगर रवींद्र जडेजा को ऑलराउंडर होने के कारण टीम में रखा गया। तो धोनी बताएं कि 2009 में अंतरराष्ट्रीय में पदार्पण करने वाले जडेजा बतौर ऑलराउंडर किस मैच में परफॉर्मेंस दिया है। कहने का मतलब जब जडेजा को विशुद्ध गेंदबाज़ के रूप में टीम में रखना है तो उनसे बेहतर गेंदबाज हरभजन हो सकते थे। वह अंतिम ओवरों में अच्छे शॉट्स के साथ रन भी बना लेते हैं...

वानखेड़े में जडेजा की सबसे ज़्यादा पिटाई हुई, तब भी उन्होंने अपने कोटे के पूरे 4 ओवर गेंदबाज़ी की और 48 रन दे डाले, जबकि धोनी ने अश्विन को केवल 2 ओवर दिया और अश्विन 2 ओवर में 20 रन दिए। धोनी अगर अश्विन का पूरा ओवर करवाते तो ज़्यादा से ज्यादा वह 20 रन और दे देते, लेकिन यह भी संभव था कि, वह एकाध विकेट गिरा देते तो बाज़ी पलट सकती थी।

मैच में 18 मार्च को दक्षिण अफ्रीका 229 रन की रक्षा नहीं कर पाया और इंग्लैंड से हार गया। यह बात धोनी नहीं जानते थे, तो उनकी रणनीति सही नहीं कही जा सकती थी। दरअसल, बल्लेबाज़ों के लिए स्वर्ग वानखेड़े मैदान पर भारत को कम से कम 220 रन के टारगेट के साथ उतरना चाहिए था। लेकिन भारत 200 के टारगेट के साथ उतरा। यही कारण था कि रहाणे विशुद्ध रूप से अपनी स्टाइल में बल्लेबाज़ी करते रहे और एकदिवसीय मैच के अनुसार बल्लेबाज़ी की, जबकि उनसे टी-20 जैसी बल्लेबाजी की उम्मीद थी।

15.3 ओवर में रहाणे का विकेट गिरने के बाद धोनी मैदान में उतरे। तक तक दो दो रन लेने के लिए विकेट के बीच ज़्यादा दौड़ने के कारण कोहली भी थक चुके थे। ऐसे में अंतिम चार ओवर में बल्लेबाज़ी की कमान धोनी को ख़ुद अपने हाथ में लेनी चाहिए थी। सवाल उठता है कि धोनी जब तूफानी बैटिंग नहीं कर सकते थे, तब अपने क्रम से पहले बैटिंग करने के लिए उतरे ही क्यों। जब वह मैदान पर आए तक 27 गेंदे खेली जानी थी. 27 बाल में केवल 66 बने जबकि भारत के पास 8 विकेट हाथ में थे। धोनी 8 बॉल खेले और बनाए 15 रन बनाए. जबकि यह समय चौके-छक्के मारने का समय था, सिंगल लेने का नहीं, क्योंकि यह बल्लेबाजों की पिच थी। मजेदार बात यह रही कि फ्रेश धोनी अंतिम 66 में से केवल 15 रन बनाए, जबकि थके मांदे कोहली अंतिम 17 गेंद में 51 रन बना दिए। लोग यह देखकर हैरान थे कि छोटे मैदान के कारण चौके-छक्के मारने की बजाय धोनी सिंगलव ले रहे थे। जबकि वेस्टइंडीज़ के सिंमस और रसेल चौके छक्के मार कर टीम को जिताया।


इस बार विश्वकप भारत में हो रहा था, सब कुछ भारत के अनुकूल था लेकिन धोनी के ग़लत फ़ैसले के चलते भारत अपने मैदानों पर फाइनल में नहीं पहुंच पाया। और तो और अगर किस्तम ने साथ न दिया होता तो भारत सेमीफाइनल में नहीं पहुंच पाता। अब ज़रूरत है, धोनी के विकल्प तलाशने की, ताकि भारतीय टीम एक मज़बूत टीम बनी रहे। धोनी ने बहुत खेल लिया, अब उन्हें आराम देने पर विचार किया जाना चाहिए,