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शनिवार, 1 अक्तूबर 2016

कविता- महात्मा गांधी की जयंती पर - इकबलिया बयान

इकबलिया बयान

हां, माई लार्ड
कबूल करता हूं मैं
भरी अदालत में 
मैंने की है हत्या
एक निहत्थे वृद्ध की
ऐसे इंसान की
जो था घनघोर विरोधी
हर तरह की हिंसा का
जो मृदुभाषी था इतना कि
करता था प्रेम
अपनी बकरी तक से
जिसकी अहिंसा बन गई
एक समूचा दर्शन
जिसे पूरी दुनिया
अब कह रही है
महात्मा, महापुरुष
अहिंसा का पुजारी
शांति का दूत
पता नहीं और क्या-क्या
इसीलिए
हैरान होते हैं लोग
क्यों नहीं मिला उसे
शांति का नोबेल पुरस्कार
मगर
नहीं चाहता था मैं
वह मरे
अपनी सहज मौत
इसलिए
वध कर डाला उसका
भून डाला गोलियों से
सबके सामने
मेरा मकसद था
करना खड़ा एक सवाल
उसे मिले संबोधनों पर
उसे दिए विशेषणों पर
ताकि
हर जिज्ञासु सोचे
आखिर क्यों हुई हत्या
उस शख्स की
जो था अजातशत्रु
नहीं था कोई दुश्मन
जिसका धरती पर
और ईमानदारी से लोग करें
अध्ययन और विश्लेषण
उसके कार्यो का
उसकी अहिंसा का
जिसमें मारे गए
युद्ध से भी कई गुना ज़्यादा लोग
और तब
आने वाली पीढ़ी
करे आकलन
कार्यों का उसके
और पता लगाए
क्या वह सचमुच था राष्ट्रप्रेमी
अथवा था
जन्मजात राजभक्त
और फिर सोचें
एक महात्मा, एक फकीर
जिसने जन्म लिया
एक स्टेट के दीवान के घर
जिसने ली शिक्षा
गांव में नहीं, भारत में भी नहीं
बल्कि सात समंदर पार
दुनिया के सबसे मंहगे शहर में
क्या वह वाक़ई था नेता
करोड़ों दरिद्र और अनपढ़ों का
या सैकड़ों भू-स्वमियों का
साधनविहीन गांववालों का
या सुविधा सम्पन्न शहरियों का
जो था पूंजीवाद का विरोधी
लेकिन जिसके क़रीबी थे
देश के सारे पूंजीपति
जिसने त्याग दिया अपना शूट
और बांध लिया लंगोटी
चलाया एक आंदोलन
रोटी और शिक्षा के लिए नहीं
बल्कि केवल सत्ता पाने के लिए
वह भी उस समय, जब
दरिद्रों, अछूतों के लिए पेट था
सबसे बड़ा आंदोलन
तब वह क्या वाक़ई था महात्मा?
या कुछ और था
यह है विषय अनुसंधान का
खोजने का जवाब
मेरे यक्ष प्रश्नों का
मुझे गर्व है
मैं रहा कामयाब
मकसद में अपने
और खड़ा कर दिया
सचमुच एक ज्वलंत सवाल
उसके महात्मापन पर
उसकी अहिंसा पर
अब लोग करेंगे प्रयास देखने का
उसकी अहिंसा के पीछे भी
और चाहेंगे जानना
उसके अनशनों व उपवासों का असली उद्देश्य
मैंने कर दिया अपना काम
अब क़ानून करे अपना काम
मैं बिलकुल तैयार हूं
सहर्ष फ़ांसी के फंदे से
झूलने के लिए
हुक़्म कीजिए
तोड़िए कलम
हे इंसाफ़ के देवता!
-हरिगोविंद विश्वकर्मा

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