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सोमवार, 5 दिसंबर 2016

कौन होगा जयललिता का उत्तराधिकारी ? नेतृत्व संकट से जूझ सकती है एआईडीएमके


नेतृत्व संकट से जूझ सकती है एआईडीएमके

हरिगोविंद विश्वकर्मा
मायावाती और ममता बैनर्जी की तरह जयराम जयललिता ने भी अपनी पार्टी के भीतर सेकेंड इन कमान यानी दूसरे नंबर की लीडरशिप को पनपने ही नहीं दिया। इसके चलते भविष्य में ऑल इंडिया द्रविड़ मुनेत्र कज़गम (एआईडीएमके) को नेतृत्व संकट से गुज़रना पड़ सकता है। फ़िलहाल, जयलिलता की गैरमौजूदगी में दो बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके ओ पनीरसेल्वम को राजभवन में राज्यपाल विद्यासागर राव ने राज्य के अगले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ तो दिला दी, लेकिन वह पार्टी को एकजुट रख पाएंगे और उसे जीत दिला पाएंगे यह भरोसा राजनीति के जानकार नहीं कर पा रहे हैं।

पनीरसेल्वम के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनकी पार्टी संगठन पर उतनी मजबूत पकड़ नही है जितनी जयललिता की थी। इतना ही नहीं जयललिता की छत्रछाया में वह अपनी खुद की कोई खास छवि या प्रभाव नहीं बना पाए। भविष्य में अगर किसी दूसरे नेता ने उन्हें रिप्लेस किया तो उनकी यही कमज़ोरी ज़िम्मेदार होगी। तमिलनाडु की दो बड़ी पार्टियों में डीएमके के एम करुणानिधि तो अपने बेटे और बेटियों को राजनीति में लाकर अपने उत्तराधिकारी के विकल्प दे दिए, लेकिन जयललिता ऐसा नहीं कर पाईं। यही वजह है कि उनकी पार्टी को भविष्य में नेतृत्व संकट का सामना करना पड़ सकता है।

इसमें दो राय नहीं कि तमिलनाडु ही नहीं देश की राजनीति में जयललिता ने अपना क़द इतना विराट कर लिया था कि उनके दल में कोई भी नेता क़द में उनकी बराबरी तो दूर उनके आसपास भी नहीं पहुंच सकता। यह वजह है कि एआईडीएमके भविष्य में उसी तरह नेतृत्व संकट से गुज़र सकती है, जैसे एमजी रामचंद्रन के निधन के बाद हुई थी। उस समय रामचंद्र की पत्नी जानकी रामचंद्रन और जयललिता के बीच उत्तराधिकारी बनने के लिए भयानक संघर्ष और विधान सभा में मारपीट तक हो गई थी। बहरहाल चुनाव में जानकी की पराजय के बाद जयललिता निर्विवाद रूप से पार्टी की नंबर एक नेता बन गईं।

दरअसल, जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार की जनता परिवारवाद की आदी तमाम नाकामी के बावजूद वह मुलायम सिंह यादव, मायावती और लालू प्रसाद यादव में ही भरोसा जताती है। वैसे ही दक्षिण भारत की प्रजा अभिनेताओं को भगवान की तरह पूजने वाले स्वभाव की होती है। ये नेता चाहे जितना भ्रष्टाचार करें, जनता उन्हें ही चुनेगी। यही वजह है कि तमिलनाडु में पिछले 60 साल से बारी बारी से डीएमके या एआईडीएमके सत्ता में आती रही है।

वस्तुतः जनता की इसी मानसिकता के कारण दक्षिण के राज्यों में एमजी रामचंद्रन, जयललिता और एनटी रामाराव की बोलबाला रहा। यहां तक कि द्रविड़ मुनेत्र कज़गम के नेता और पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके एम करुणानिधि भी तमिल फिल्म और तमिल साहित्य के नामचीन नाम रहे हैं। तमिलनाडु में रजनीकांत की लोकप्रियता का आलम यह है कि उनकी फिल्म फ्लॉप फिल्म भी इतना ज़्यादा बिज़नेस कर लेती है कि हिंदी की हिट फिल्म भी उतने पैसे नहीं कमा पाती है।

अब सवाल उठ रहा है कि करिश्माई नेता के नेतृत्व की आदी तमिल जनता 65 साल के पनीरसेल्वम को अपने नेता के रूप में स्वीकार कर पाएंगी, इस पर बहुत भारी संदेह है, क्योंकि जयललिता का अंधभक्त होने के नाते उन्हें भले सरकार का मुखिया बना दिया गया हो, लेकिन वह पूरी पार्टी को संभालकर एकजुट रख पाएंगे और करुणानिधि को चुनैती दे पाएंगे इस पर भी दुविधा है। फिर पार्टी में जयललिता का कद इतना बड़ा था कि उनकी पार्टी में सब उनके आगे बौने लगते हैं।

दरअसल, पनीरसेल्वम की इमैज जयललिता के कट्टर भक्त की रही है। यहां तक कि 2014 में भ्रष्टाचार के आरोप में जयललिता के जेल भेजे जाने के बाद वह सार्वजनिक मंच पर फूट-फूट कर रोए थे। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते समय भी पूरे देश ने उन्हें मंच पर ही अपने आंसू बहाते देखा था। बहरहाल, इस साल सितंबर में जयललिता के बीमार होने पर पनीरसेल्वम ही जयललिता के नाम पर तमिलनाडु का राजकाज संभाल रहे थे। जयललिता के आठ विभागों का प्रभार उन्हें ही दिया गया था।

राजनीतिक हलकों में कहा जा रहा है कि जयललिता के उत्तराधिकारी और तमिलनाडु के अगले मुख्यमंत्री के रूप में 45 साल के दक्ष‍िण भारतीय सुपरस्टार थला अजित कुमार पनीरसेल्वम से बेहतर विकल्प हो सकते थे। वह युवा हैं और सबसे बड़ी बात उस परंपरा के प्रतिनिधि है। जिससे एमजी रामचंद्रन और जे जयलिलता इस मुकाम तक पहुंची हैं यानी वह ग्लैमरस दुनिया के आदमी है, तमिल जनता जिनकी दीवानी रही है।

जयललिता की हालत बहुत ज़्यादा बिगड़ने के बाद सोमवार को कहा जा रहा था कि जयललिता ने अपनी वसीयत में लिखा हुआ है कि अजित कुमार ही उनके उत्तराधिकारी होंगे। इस वसीयत से जयललिता के तमाम बेहद भरोसमंद सहयोगी अच्छी तरह अवगत थे लेकिन, कहा जा रहा है कि सियासत का कोई अनुभव नहीं होने के कारण अंतिम समय में पनीरसेल्वम को ही जयललिता का उत्तराधिकारी और मुख्यमंत्री बनाने का फ़ैसला किया गया।

तमिलनाडु की जनता भावुक स्वभाव की होती है। अभिनेताओं के रूपहले परदे की छवि को ही असली मानती आई है। यही वजह है कि इस दक्षिणी राज्य में अभिनेताओं की लोकप्रियता सिर चढ़कर बोलती है। एमजी रामचंद्रन और जयललिता अपने रूपहले परदे की इमैज के चलते लोकप्रियता के शिखर तक पहंचने में कामयाब रहे। इसी परिपाटी के चलते जयललिता के उत्तराधिकारी के रूम में अजीत कुमार का नाम आगे किया जा रहा था।  

मुख्यमंत्री की कुर्सी पर शशिकला नटराजन की भी नज़र थी। शशिकला जयललिता की सबसे करीबी मानी जाती रही हैं। एक जमाने में कहा जाता था कि जयललिता के हर फैसले के पीछे शशिकला का हाथ होता है लेकिन बाद में दोनों के रिश्तों में खटास आ गई थी। शशिकला भी पनीरसेल्वम की तरह थेवर समुदाय से हैं। उनका प्रभाव जयललिता के करीबी लोगों में तो है पर वह परदे के पीछे ही काम करती रही हैं इसलिए कहा जाता है कि उनके पास जनाधार नहीं है। फिर शशिकला पर भी जयललिता के साथ इन पर भ्रष्‍टाचार के मामले चले हैं। उनके भतीजे सुधाकरन को जयललिता ने दत्‍तक पुत्र माना था और 1995 में उसकी भव्‍य शादी के चर्चे आज भी होते हैं। शादी में खर्चे के कारण जयललिता की आलोचना भी हुई थी और बाद में उन पर जो आरोप लगे उसकी पृष्ठिभूमि शाही शादी ही थी।


वैसे तो एआईडीएमके में 78 साल के पानरुति रामचंद्रन, लोकसभा के उप सभापति एम. थंबीदुरई, मंत्री इडापड्डी पलानीस्वामी, अन्नाद्रमुक के उभरते सितारे 57 साल के एम फोई पांडियाराजन और शीला बालाकृष्‍णन भी संभावित उत्तराधिकारियों की फेहरिस्त में हैं। पनीसेल्वम करुणानिधि और उनके बेटे को चुनौती देते हुए पार्टी का सफल नेतृत्व कर पाएंगे, इस पर इस समय दावा करना आत्मघाती हो सकता है। फ़िलहाल तो राज्य में सात दिन का राजनीतिक शोक है। कोई गतिविधि उसलके बाद होगी।

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