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रविवार, 31 दिसंबर 2017

कोलाबा रेलवे स्टेशन - 31 दिसंबर 1930 को रात 12 बजे बंद हुआ था

31 दिसंबर 1930 को रात 12 बजे बंद हुआ था कोलाबा रेलवे स्टेशन

पश्चिम रेलवे की लोकल गाड़ियों से यात्रा करने वाले लाखों यात्रियों को पता नहीं होगा कि क़रीब 87-88 साल पहले चर्चगेट पश्चिम रेलवे का अंतिम स्टेशन नहीं था। चर्चगेट से आगे भी एक स्टेशन थाजिसका नाम कोलाबा था। जिसे तत्कालीन द बॉम्बे, बड़ौदा एंड सेंट्रल इंडिया रेलवे (बीबी एंड सीआई रेलवे) ने 57 साल तक चलाकर सन् 1930 में आज ही के दिन रात 12 बजे बदे कर दिया।


आज जहां चर्चगेट रेलवे स्टेशन है, उसे पंद्रहवी सदी तक लिटिल कोलाबा या वूमन आईलैंड कहा जाता था। उसके दक्षिण में कोलाबा द्वीप था तो उत्तर में बॉम-बे (जिसे बाद में बॉम्बे कहा गया) था। 16 अप्रैल 1853 को बोरीबंदर और ठाणे के बीच मुंबई में एशिया की पहली रेलगाड़ी शुरू होने पर अंग्रेजों ने अरब सागर के समानांतर रेलसेवा शुरू करने का फैसला किया। इसी परिकल्पना के तहत 2 जुलाई 1855 को बीबी एंड सीआई रेलवे की स्थापना की गई।, जिसे आजकल पश्चिम रेलवे कहते हैं। इसके बाद कोलाबा से विरार तक रेल सेवा चलाने की संभावना पर विचार होने लगा। 1867 में ग्रांट रोड और मरीन लाइंस के पास बॉम्बे बैकबे रेलवे स्टेशन बनाया गया। बहराल, 12 अप्रैल, 1867 के दिन पश्चिम रेलवे की लोकल सेवा बॉम्बे बैकबे और विरार के बीच शुरू हो गई, लेकिन रेल सेवा को कोलाबा तक विस्तारित करने की योजना थी।


जैसा कि सर्वविदित है मुंबई पहले सात द्वीपों का समूह था। पांच द्वीपों बॉम्बे, मझगांवपरेलवर्ली और माहिम पहले समुद्र को पाटकर (रिक्लेम) आपस में मिला दिए। वूमैंन्स आइलैंड यानी छोटा कोलाबा बॉम्बे आईलैंड के बहुत पास थालेकिन सबसे दक्षिण का कोलाबा द्वीप पूरी तरह कटा हुआ था। केवल नाव से ही वहां जाया जा सकता था। 1835 में कोलाबा को छोटा कोलाबा और बॉम्बे द्वीप से काजवे से जोड़ा गया थाजिसे आजकल शहीद भगत सिंह मार्ग कहा जाता है। बहरहाल बैकबे रिक्लेमेशन कंपनी ने समुद्र को पाटकर पहले छोटा कोलाबा को बॉम्बे से जोड़ा और उसके बाद काजवे के आसपास के समुद्र को पाटकर समतल बना दिया। यह जमीन बीबी एंड सीआई रेलवे को दे दी गई। इसके बाद रिक्लेमेशन का काम युद्धस्तर पर होता रहा। रिक्लेमेशन का काम पूरा होने पर सरकार ने 1872 में लंबी जद्दोजहद के बाद बीबी एंड सीआई रेलवे (अब पश्चिम रेलवे) को ज़मीन दे दी। जैसे जैसे रेलवे को ज़मीन मिलती गई, रेलवे पटरी बिछाई जाती रही। एक साल के भीतर रेल पटरी बिछाने का काम पूरा करके 1873 में कोलाबा स्टेशन शुरू कर दिया गया। रेलवे लाइन को बैकबे बॉम्बे के आगे चर्चगेट होकर कोलाबा तक बढ़ा दिया गया इसके बाद एक्प्रेस, लोकल और माल गाड़ियां बॉम्बे बैकबे से आगे चर्चगेट होती हुई कोलाबा तक जाने लगी थीं। पहले का कोलाबा स्टेशन लकड़ी का अस्थाई शेड के रूप में बना था। 1996 में नया स्टेशन की नई इमारत बनाई गईतब तक रोजाना 24 ट्रेन चलाने लगी थीं इतना ही नहीं 19वी सदी के अंत से पहले कोलाबा रेलवे यार्ड भी बनाया गया था। जहां आजकल बधवार पार्क हैवहां पहले कोलाबा रेलवे स्टेशन का यार्ड था। 


इस बीच यह महसूस किया जाने लगा कि कोलाबा में ज़मीन नहीं रह गई है। लिहाज़ा, कॉटन डिपो को शिवड़ी में स्थानांतरित कर दिया गया। 18 दिसंबर 1930 को बंबई सेंट्रल स्टेशन अस्तित्व में आया। इसके बाद बहुत बड़ा फ़ैसला लेते हुए रेलवे ने बंबई सेंट्रल को एक्सप्रेस टर्मिनस और चर्चगेट को लोकल टर्मिनस बना दिया। 31 दिसंबर की रात कोलाबा से अंतिम ट्रेन बोरीवली के लिए रवाना हुई और उसके बाद कोलाबा स्टेशन इतिहास का हिस्सा बन गया।

   
कोलाबा को जानने के लिए बॉम्बे (अब मुंबई) का संक्षिप्त इतिहास भी जानना ज़रूरी है। दरअसल, यूं तो मुंबई का इतिहास पाषण काल (स्टोन एज) से शुरू होता है, जब इस भूभाग को हैप्टानेसिया कहा जाता था। कांदिवली के पास मिले प्राचीन अवशेष बताते हैं, कि यह द्वीप समूह पाषाण युग से बसा हुआ है। मानव आबादी के लिखित प्रमाण 250 ईसा पूर्व तक मिलते हैं। ईसा पूर्व तीसरी सदी में अशोक महान के शासन में यह भूभाग मौर्य साम्राज्य का हिस्सा था। वैसे इस पर सातवाहन साम्राज्य एवं इंडो-साइथियन वेस्टर्न सैट्रैप का भी नियंत्रण रहा। बाद में यहां 1343 तक हिंदू सिल्हारा वंश और 1534 तक गुजरात सल्तनत का शासन रहा। उनसे इस द्वीप समूह को पुर्तगालियों ने हथिया लिया और 1661 तक इस पर पुर्तगालियों का आधिपत्य रहा। इसी दौर में इस भूभाग को बॉम्बे नाम मिला। कान्हेरी, महाकाली एवं ऐलीफैंटा गुफाएं, वाल्केश्वर मंदिर, हाजी अली दरगाह, पुर्तगीज चर्च अशोक से पुर्तगाल के क़रीब 18 सौ से ज़्यादा के शासन के प्रमाण हैं।


बहरहाल, 1668 तक यह भूभाग सात द्वीपों कोलाबा (कोलाबा, कफपरेड, लिटिल कोलाबा (चर्चगेट, नरीमन पाइंट), बॉम्बे (डोंगरी, गिरगांव, चर्नीरोड, ग्रांट रोड, मलबार हिल, मुंबई सेंट्रल क्षेत्र) मझगांव (मझगांव, रे रोड,), परेल (लालबाग, भायखला) वर्ली (वर्ली, प्रभादेवी) और माहिम (सायन, माहिम, धारावी) के रूप में फैला था। इन शासकों द्वारा बनाए गए स्मारकों, मंदिरों, मस्जिदों और चर्च के अलावा बीरानगी ही थी। कहीम कोई विकास नहीं हुआ था। 1661 में पुर्तगाल ने राजकुमारी कैथरीन की चार्ल्स द्वितीय से शादी के बाद इस भूभाग को अंग्रेज़ों को दहेज के रूप में दे दिया। सन् 1668 के साल ने बॉम्बे की तकदीर बदल दी। उसी साल अंग्रज़ों बॉम्बे को 10 पाउंड के वार्षिक किराए पर ईस्ट इंडिया कंपनी को दे दिया। 1687 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना मुख्यालय सूरत से बॉम्बे स्थानांतरित कर दिया और ये बॉम्बे प्रेसीडेंसी का मुख्यालय बन गया। उसी समय धीरे-धीरे सातों द्वीपों को एक दूसरे से जोड़ने का उपक्रम शुरू हुआ जो सवा सौ साल तक चलता रहा। सातों द्वीपों को पूरी तरह तो नहीं, आंशिक तौर पर ज़रूर एक कर दिया गया। बाद में बड़े पैमाने पर सिविल कार्य हुए, जिनमें कोलाबा और छोटा कोलाबा को छोड़कर सभी द्वीपों को कनेक्ट करने की परियोजना मुख्य थी। इस परियोजना को हॉर्नबाय वेल्लार्ड कहा गया, जो 1845 में पूरी हुई। मुंबई अब विश्वस्तरीय कॉमर्शियल सिटी बनने की ओर अग्रसर थी।




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