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रविवार, 18 फ़रवरी 2018

राष्ट्र को समर्पित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज



हरिगोविंद विश्वकर्मा
क्या आप यक़ीन करेंगे, कि इस देश में श्रम समेत कई बिषयों के क़ानून के आधार ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले रिसर्चर्स की रिपोर्ट के आदार पर ड्राफ्ट की गई है। इस तरह की रचनात्मक काम देश में केवल एक ही संस्थान कर रहा है और वह है टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज।

भारत की सामाजिक दशा कई सदियों ही नहीं हज़ारों साल से बड़ी दयनीय रही है। मगर दुनिया इससे बेख़बर रही। देश की सामाजिक स्थिति पर किसी का ध्यान इसलिए नहीं गया, क्योंकि इस सब्जेक्ट पर काम करने वाला कोई नहीं था। संयोग से पिछली सदी के 1920-30 के दशक में इस तरह के संस्थान की ज़रूरत महसूस की गई और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के रूप में एक संस्थान सामने आया।

राष्ट्रीय मूल्‍यांकन और प्रत्यायन परिषद की ओर से 5-स्टार सम्मान और 'ए' ग्रेड पा चुका टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज यानी टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान (टिस्स) सोशल साइंस की स्टडी के लिए भारत ही नहीं दुनिया का अग्रणी संस्थान रहा है। इसकी महत्ता इसी बात से जानी जा सकती है कि इसकी कई रिपोर्ट्स पर कानून भी बनाए जा चुके हैं। भारत का जो श्रम कानून है, वह टिस्स की देन है।

सृजित संपत्ति के उचित आवंटन के जरिए नए समाज का निर्माण उद्योग का असली मकसद है। यह विजन टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा और उनके बेटे सर दोराबजी टाटा का है। इसी विजन के तहत टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज का जन्म हुआ। 1920 के दशक में मुंबई के नागपाडा की चालों में अमेरिकी मिशनरी क्लिफोर्ड मैंशर्ट ने जमशेदजी के सहयोग से शहरी सामुदायिक प्रोग्राम शुरू किया।

इनमें दोराबजी भी सहयोग करते थे। इसी दौरान एक संस्थान की जरूरत हुई और 1936 में नागपाडा नेबरहुड हाउस में दोराबजी टाटा ग्रेजुएट स्कूल ऑफ सोशल वर्क शुरू हुआ। डॉ मैंशर्ट निदेशक बने। पहले साल ही डिप्लोमा कोर्स होने के बावजूद 20 सीटों के लिए 400 आवेदन आए। इसका नाम बदलकर 1944 में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज कर दिया गया। टिस्स एशिया पैसिफ़िक क्षेत्र में सामाजिक कार्य शिक्षा में अग्रणी संस्था है। इसने सामाजिक नीति, नियोजन, हस्तक्षेप रणनीतियों और मानव संसाधन विकास के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है।

1936 और 1948 के दौरान संस्थान ने ऐसी रिपोर्ट्स तैयार कीं, जिनका असर राष्ट्रीय कानूनों व नीतियों पर पड़ा। पूर्व निदेशक एस परशुरामन टिस्स के इतिहास में बारे में बताते हैं, “टिस्स की रिपोर्ट्स पर कानून बने। हमने श्रम कल्याण एवं औद्योगिक प्रबंधन कोर्स चलाए। उसी पर 1948 में श्रम कानू बना। देश की श्रम कल्याण की नीति सीधे-सीधे सर दोरबाजी टाटा ग्रेजुएट स्कूल के कार्य से विकसित हुई।”

देवनार कैंपस का शुभारंभ 6 अक्टूबर 1954 को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने किया। 1964 में इसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से डीम्ड यूनिवर्सिटी की मान्यता मिली। तब से टिस्स ने शिक्षा कार्यक्रमों का लगातार विस्तार किया। संस्थान सामाजिक व शैक्षणिक की बदलती जरूरतों के अनुसार सामाजिक कार्य के क्षेत्रमें व्यापक स्तर पर काम कर रहा है। टिस्स मानव संसाधनों और समाज कार्य में पेशेवर प्रशिक्षण देता है। यहां संगठित और सुव्यवस्थित फील्ड प्रोजेक्ट्स होते हैं, जहां विभिन्न समस्याओं पर रिसर्च होता है। संस्थान ने 500 से अधिक शोध रिपोर्ट प्रकाशित की हैं। 32 फील्ड एक्शन प्रोजेक्ट आरंभ किए हैं।

हालांकि टिस्स डीम्ड यूनिवर्सिटी है, फिर भी संचालन बोर्ड का अध्यक्ष ट्रस्ट प्रतिनिधि ही होता है। जेआरडी टाटा ने कई साल बोर्ड की अध्यक्षता की। उनका मानना था कि संपत्ति वापस समाज के विकास में लगाई जानी चाहिए। सोलापुर में सूखाग्रस्त इलाके में ग्रामीण कैंपस है। वहां पूरी तरह से सूखी पहाड़ियों को सफलतापूर्वक हर-भरा बनाया जा चुका है। कई अन्य परियोजनाएं आकार ले रही हैं। संस्थान की आगामी योजनाओं में विकासपरक अध्ययन, आपदा प्रबंधन, घरेलू हिंसा और मानवाधिकार से संबंधित अन्य केंद्रों की शुरुआत शामिल है। टिस्स शिक्षा, ट्रेनिंग और रिसर्च में योगदान दे रहा है। एनजीओज को तकनीकी मदद देता टाटा समूह ने ऐसे संस्थान का निर्माण किया है जिसने देश को संवारा, आगे बढ़ने में मदद की और अब सशक्त बना रहा है।

टिस्स सामाजिक विज्ञान, कार्मिक प्रबंधन, औद्योगिक संबंध एवं स्वास्थ्य, अस्पताल प्रबंधन और सामाजिक कार्य में स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट की डिग्रियां देता है। टिस्स में नौ शिक्षण विभाग, आठ अनुसंधान इकाइयां, दो संसाधन इकाइयां और संसाधन सेल हैं।

'टिस्सा' की वेबसाइट
छात्रों और रिसर्चर्स का 'अल्मा मैटर', टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान के बारे में यह लैटिन मुहावरा एकदम सही है, क्योंकि टिस्स अपने छात्रों के लिए के लिए मातृ संस्थान ही नहीं, मां की तरह भी है, जो अपने हर छात्र का भरण-पोषण बौद्धिक ख़ुराक देकर करता रहा है। इसीलिए आपका अल्मा मैटर टिस्स, आप सबकी महान उपलब्धियों की दास्तान जानना और तमाम दूसरे टिस्सियन्स के साथ ख़ुशी के साथ शेयर करना चाहता है। यह अपने तमाम टिस्सियन्स की कीर्ति, सफलता, उपलब्धि, विशेषज्ञता, जीवन-अनुभव, सम्मान, अपेक्षा, प्रतिबद्धता, दोस्ती और अपने स्वयं के संस्थान टिस्स, जिसे ख़ुद मिल चुका है, का आभार व्यक्त करने वाली भावनाओं का लिए स्वागत करता हैं।

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस अलामस एसोसिएशन यानी टिस्सा का मुख्य उद्देश्य छात्रों और पूर्व छात्रों को सलाह, अनुसंधान और परियोजनाओं, मार्गदर्शन, इंटर्नशिप, फील्डवर्क अवसर, नौकरी पोस्टिंग, संदर्भ, छात्रवृत्ति और पुरस्कार के जरिए संबंधित क्षेत्रों में आपसी विकास के लिए एकजुट करना है। टिस्स और टिस्सियन्स को आपस में जोड़ने, उनसे संवाद करने और अल्ट्रास्पेशल बॉन्डिंग फिर से जीवंत करने का सबसे आसान, सबसे तेज़ और सबसे सुरक्षित माध्यम वेबसाइट है। टिस्सा की वेबसाइट 3 फरवरी, 2018 को शुरू हो गई। यह सुपर स्पेशल वेबसाइट दुनिया भर में फैले टिस्स के छात्रों को समर्पित है और चार दशकों के बाद पुराने और नए बैच को साथ लाएगा। इसीलिए टिस्सा वेबसाइट हमेशा ट्रेंडी और अपटूडेट रहती है।

टिस्स की स्नातक और कोंकण बाज़ार की ओनर नयन खड़पकर कहते हैं, "सच पूछो तो टाटा इंस्टीयूट ऑफ़ सोशल साइंस की कीर्ति और महिमा को दुनिया के कोने कोने में ले जाने के लिए सबसे परफेक्ट ब्रांड अंबेसेडर टिस्सियन्स ही हैं। टिस्स ने हम सबके जीवन को प्रकाशमान किया है, समग्र शिक्षा उपलब्ध कराकर हमारे भविष्य को उज्जवल बनाया है। इसीलिए टिस्स की फिर से कल्पना करके अपने प्यार, सम्मान और कृतज्ञता दिखाने की हम सबकी बारी है।"

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